भारतीय योगी और रहस्यवादी जग्गी वासुदेव जी को सबसे अधिक आज का युवा पसंद करता है हर युवा की पहली पसंद आध्यात्मिक क्षेत्र में जग्गी वासुदेव है। हर स्टूडेंट हर नौजवान के दिलो दिमाग मे इनकी खुमारी रहती है, सद्गुरु वासुदेव जी अधिकतर स्कूल कालेज यूनिवर्सिटीज में अलग अलग तरह से छात्र छात्राओं को अवेरनेस प्रोग्राम करते रहते है जिसकी वजह से युवाओं की पहली पसंद बनें रहते हैं। सबसे बड़ी यह बात है कि वह बच्चों से बच्चों के मन की बात करते है और उनकी समस्याओं के निदान के लिए उनको प्रशिक्षित करते हैं।जग्गी वासुदेव जी का जन्म 5 सितम्बर 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में एक यादव परिवार में हुआ। इनका परिवार बड़ा ही धार्मिक था। जग्गी वासुदेव जी किबधर्मिक मान्यता हिन्दू धर्म की है।यह भारतीय मूल के संत परम्परा के प्रचारक है, इनके पिता जी का नाम डॉ वासुदेव व माता जी का नाम श्री मती सुशीला वासुदेव है। इनके पिता जी पेशे से एक चिकित्सक थे। जग्गी वासुदेव का पूरा नाम सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी महाराज है यह शिव जी के उपासक है यह एक योगी हैं। सद्गुरु द्वारा लाभरहित मानव सेवी संस्थान चलाए जाते है जिसमे लग भाग 250000 से अधिक स्वयं सेवी हैं। सद्गुरु जी ने 8 अलग अलग भाषाओं में 100 से अधिक पुस्तकों का लेखन किआ है, भारत सरकार ने सन 2017 में उनको पद्म विभूषण से नवाजा है। यह भारतीय योगी व रहस्यवादी प्रवृत्ति के संत हैं।
प्रारंभिक जीवन
सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी का जन्म 5 सितम्बर 1957 में कर्नाटक राज्य के शहर मैसूर के प्रतिष्ठित चिकित्सक डॉ वासुदेव यादव के यहां हिन्दू धर्म मे हुआ। सुरुवात के दिनों से ही जग्गी वासुदेव जी को प्रकृति के साथ साथ सापों से बेहद लगाव था । अक्सर जब वे शाम को जंगल से वापस घर को लौटते तो उनकी झोली में बहुत सारे साँप होते जिनके साथ वे खेलते रहते।जब वे घर से जंगल की तरफ जाते तो कई कई दिन वापस नही आते थे, जंगल मे ही पेड़ के शाखों पर बैठ कर प्राकृतिक हवाओं की मनोरम अनुभूति महसूस करते करते युही अंतर्ध्यान हो जाते और उनको पता भी नही चलता था।साँपो को पढ़ने में उन्हें महारत सी हासिल है। सद्गुरु ने अपने बालापन में ही योगाभ्यास सुरु कर दिया था। जब वे योगभ्यास सुरु किए तब उनकी उम्र महज 11 वर्ष ही बताई गयी है। सद्गुरु के योग गुरु मल्लाडिहल्ली स्वामी जी है जिनका दूसरा नाम श्री राघवेन्द्र राव है। कुछ दिन इन्होंने फ़िल्म जगत में भी काम किया है इनकी फिल्म है- ONE : THE MOVIE जसमे ये मुख्य अभिनय का किदार निभाए हैं।
शिक्षा दीक्षा
सद्गुरु स्वामी की शिक्षा दीक्षा मैसूर से ही हुई है। हाइस्कूल व इंटर मीडिएट की पढ़ाई इन्होंने डिमांस्ट्रेशन स्कूल मैसूर से 1973 में पूरी करने के पश्चात स्नातक की पढ़ाई के लिए मैसूर विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और अंग्रेजी साहित्य में स्नातक किआ।
प्रेम संबंध व वैवाहिक जीवन
जग्गी वासुदेव जी की प्रेमिका का नाम विजयकुमारी(विज्जी) था और इनकी शादी भी इनकी प्रेमिका से ही हुई। इनका विवाह शिवरात्रि के दिन सन 1984 में हुआ था। और कुछ दिन बाद इनकी पत्नी का आकस्मिक निधन हो जाता है जिसकी वजह से यह विवादों में आते हैं। इनकी पत्नी की मृत्यु 23 जनवरी 1997 में हो हुआ था। यह मृत्यु एक घटना के रूप में उभर कर आई जिसकी वजह से जग्गी वासुदेव ओर कई तरह के आरोप प्रत्यारोप भी लगे। जग्गी वासुदेव की एक बेटी है जिसका नाम राधे जग्गी है जो वर्ष 1990 के दसक में पैदा हुईं। राधे जग्गी का विवाह कर्नाटक शास्त्रीय गायक संदीप नारायण से हुई है। परिवार में माता पिता पत्नी बेटी के अलावा एक भाई व 2 बहने भी हैं।
विवादों से नाता
सद्गुरु जग्गी वासुदेव के जीवन एक ऐसा भी दौर आया जब उनका जीवन विवादों में फस गया चारो तरफ उनकी आलोचनाएं आने लगी। यह तब होना सुरु हुआ जब उनकी पत्नी की मृत्य हो गयी। सन 1997 में पत्नी की मृत्यु के बाद उनके खिला बेंगलुरू के एक पोलिस स्टेशन में FIR दर्ज होती है, जिसमें उनपर पत्नी को दहेज के एवज में हत्या करने व प्रताड़ित करने के परिपेक्ष्य में आरोप लगाया गया था। जिसकी वजह से तमिल की प्रिंट मीडिया टेलीविजिन मीडिया में उनके खिलाफ एक जबरजस्त रोष पैदा किया गया। साथ ही उनके विरोध प्रदर्शन में लाल झंडे (खूनी के रूप में संदर्भित करना) भी दिखाए गए। साथ ही वे अधिक विवादों के घेरे में तब प्रदर्शित हुई जब उनके खिलाफ तमिलनाडु जिला अदालत में एक याचिका दायर हुई, जिसमे उनपर यह आरोप लगाया गया कि उनके ईशा योगकेन्द्र के कोयम्बटूर योगाश्रम में दो महिलाओं को बंदी बनाकर रखागया है। इसके साथ ही कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओँ के साथ कई पर्यावरणविदों ने यह भी दावा किया कि ईशा योगकेन्द्र वन्य भूमि पर अथपित किया गया है, और वे वेल्लीयानिरी हिल्स के पश्चिमी घाट में स्थित एलिफेंट कॉरिडोर (हाथियों का क्षेत्र) पर अतिक्रमण कर रहा है, जिसकी वजह से हाथियों को क्षति पहुच रही है वे प्रताड़ित होकर मर रहे हैं।
आध्यात्मिक जीवन व अनुभव
जब उनको आध्यात्मिक ज्ञान का बोध हुआ या अध्यात्म महसूस हुआ तब उनकी उम्र लगभग 25 वर्ष की थी। वह दौर 1982 का था। पहले की भांति वे जंगल मे जाते और कभी पेड़ो पर कभी पहाड़ी पर घूमते टहलते प्रकृति की सुंदरता को महसूस करते हुए अंतर्ध्यान हो जाते ऐसा ही उस समय उनके साथ तब हुआ जब जग्गी वासुदेव मैसूर में स्थित चामुंडा की पर घूमने के लिए चढ़े थे, घूमते-घूमते वह जाकर एक चट्टान पर बैठ गए। उस समय वह पूरे होशोहवाश में थे उनकी चक्षु पूर्ण रूप से खुली हुई थी। अचानक से उनको अजीब सा महसूस होने लगा जिससे उनको गहन आत्म की अनुभूति महसूस होने लगी, वह अचानक से खुद को शरीर से परे महसूस करने लहे उनको ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मानो वो सर्वत्र फैले हो कुछ इस तरह जैसे हवाएं सर्व व्यापी हो। इस तरह की अनुभूति उनको एक अलग ही आनंद में छोड़ जाती जिससे उनको यह अनुभूति होती कि वे सर्वत्र है पेड़ो में चट्टानों में हवाओ में पृथ्वी में हर जगह खुद को महसूस कर रहे थे। इस तरह का अनुभव उनको कई बार हुआ और जब जब इस तरह का अनुभव महसूस करते उनको परमानंद की अनुभूति होती। इस विचित्र घटना ने उनकी पूरी जीवन शैली बदल कर रख दिया जिससे प्रभावित होकर अपने इस महान दैवीय अनुभव को बांटने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने का प्रण लिया। इसी उद्देश्य से ईशा फाउंडेशन की स्थापना हुई, और ईशा योग साधना के कार्यक्रम की शुरुवात हुई और इस यौगिक संभावना को विश्व को अर्पित करने की शुरुवात की गई।
ईशा फाउंडेशन
ईशा फाउंडेशन की स्थापना स्वयं सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी ने किया है। ईसका उद्देश्य लोगो की शारीरिक मानसिक और आंतरिक कुशलता को मजबूत व सुदृढ़ बनाना है। यह एक लाभ रहित मानव सेवा संस्थान है। ईशा फाउंडेशन दो लाख पचास हजार से अधिक स्वयं सेवकों द्वारा चलाया जाता है। ईशा फाउंडेशन के कई प्रस्ताव है, जो देश व मानव के हिट के लिए संचालित किए जाते हैं। ग्रीन हैंड्स परियोजना यह ईशा फाउंडेशन की पर्यावरण से रिलेटेड परियोजना है। जिसका उद्देश्य पूरे तमिलनाडु में 16 करोड़ वृक्षारोपण करना है।एभी तक इस परियोजना के माध्यम से तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में 85 लाख पौधों का रोपण 20 लाख से अधिक लोगो द्वारा अलग अलग 1800 से अधिक समुदायों में आयोजित किया जा चुका है। इस परियोजना को एक बड़ी उपलब्धि भी हासिल हो चुकी है, जो यह है की 17 अक्टूबर 2006 में तमिलनाडु के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख वृक्षारोपण करके गिनीज बुक वर्ल्ड रिकार्ड अपनी किया था। इस परियोना को पर्यावरण में अमूल्य योगदान के लिए इंदिरागांधी पर्यावरण पुरस्कार भी 2008 में मिल चुका है। नदी संरक्षण के लिए ईशा फाउंडेशन द्वारा रैली फार रिवर परियोजना चलाई जा रही है। जिसका उद्देश्य नदियों का विस्तार व जल स्वच्छता है। इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र कोयम्बटूर में है।
उपलब्धी व पुरुस्कार
सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी की इतनी उपलब्धियां है कि एक सामान्य इंसान सोचने पर मजबूर हो जाता है। उनमें से कुछ उपलब्धि के बारे में यहां बताया गया है। ईशा फाउंडेशन के माध्यम से भारत के साथ साथ अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया व अन्य देशों में योग कार्यक्रम के साथ साथ कई सामाजिक और सामुदायिक विकास की योजनाओं पर काम करते हैं। जो पूरी तरह से मानव हित में होती हैं। विशेष उलब्धि में सद्गुरु जग्गी वासुदेव जो कोसंयुक राष्ट्र अमेंरिका में संयुक्त राष्ट्र और सामाजिक परिषद (ECOSOC) में विशिष्ट सलाहकार की पदवी दी गयी है। यह सब देखते हुए भारत सरकार ने सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी को 2008 में इंदिरागांधी पर्यावरण पुरुस्कार व 2017 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया है।
ईशा योग केंद्र
ईशा फाउंडेशन के संरक्षण में ईशा योग केंद्र संचालित किया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य है सभी लोगो को निःशुल्क शारीरिक मानसिक और आंतरिक कुशलता का विकास करना है। यह योग केंद्र बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है जिसका क्षेत्रफल 150 एकड़ में फैला हुआ है। यह योगकेन्द्र पूरी तरह से हरा भरा है जिसमे हर तरह के पौधे लगाए गए हैं ईशा योग केंद्र घने वनों से घिरा हुआ केंद्र है, जिसके चारों तरफ हरियाली युक्त पेड़ पौधे घने जंगल के रूप में घेरे हुए है जो किसी के भी मन को मोह लेने वाले दृश्य को महसूस कराते हैं। चुकी सद्गुरु जी को प्रकृति से बेहद लगाव है और इसी वजह से उन्होंने इसे इस तरह बनाया है। ईशा योग केंद्र नीलगिरि जीवमंडल का अहम हिस्सा है। जहाँ पर सम्पूर्ण वन्य जीवन उपलब्ध है। मनुष्य के शारीरिक मानसिक व आंतरिक विकाश के लिए बनाया गया यह शक्तिशाली योग स्थान योग के चारों मुख्य मार्गों (ज्ञान, क्रिया, कर्म, भक्ति) को आम जन तक पहुचाने के लिए समर्पित है। सन 1999 में ध्यानलिंग योग मंदिर की स्थापना व प्राण प्रतिष्ठा सद्गुरु जी ने इसी परिसर में किया था।
ध्यानलिंग योग मंदिर की स्थापना व विशेषता
ध्यानलिंग योग मंदिर की स्थापना सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने 1999 में ईशा योग केंद्र कोयम्बटूर के परिसर में स्वयं किया था। ध्यानलिंग की ऊँचाई 13 फिट 9 इंच की है यह अपनई तरह का पहला ध्यानलिंग है। जो बश्व का सबसे बड़ा पारा पर आधारित जीवित लिंग है, यहां पर किसी भी धर्म या समुदाय के लोगो को प्रतिबंधित नही किया गया है यहां हर धर्म हर मत हर मजहब के लोग आकर ध्यान लगा सकते हैं। इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि इसके मेन गेट पर सर्व धर्म का चिह्न विद्यमान है। जिससे यह प्रतीत होता है कि इसके दरवाजे सभी के लिए खुले है चाहे वह हिन्दू हो चाहे मुस्लिम हो चाहे सिख हो या इशाई हो या किसी भी धर्म से ताल्लुक रखता हो इसका मकसद धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर सम्पूर्ण मानवता को आमंत्रण देना है। यहां पर पूजा पाठ के लिए कोई भी भी विधि विधान की जरूरत नही होती है न ही प्रार्थना या पूजा की जाती है। मंदिर का मुख्य उद्देश्य है कि जो लोग ईश्वर के ध्यान से वंचित रह जाते हैं या नही कर पाते हैं वे यहां आकर 2 मीन की ध्यान साधना के बाद ध्यान की गहरी अवस्था का अनुभव कर एक्ट हैं। यह अपनी तरह का पहला ध्यान लिंग है जिसकी प्रतिष्ठा योग विज्ञान के सार से पूरी हुई है।
आदियोगी शिव की प्रतिमा
आदियोगी शिव जी की प्रतिमा की स्थापना सद्गुरु जग्गी वादमसुदेव जी द्वारा 24 फरवरी 2017 को भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री के गरिमामयी उपस्थिति में महाशिवरात्रि के शुभावसर पर उध्दृत किया गया। जिसका उद्दघाटन माननीय प्रधानमंत्री जी ने किया । आदियोगी शिव प्रतिमा भगवान शंकर की 112 फीट (34मीटर) ऊंची विशाल प्रतिमा है, जिसकी स्थापना कोयम्बटूर में सद्गुरु द्वारा किया गया है। इस प्रतिमा की अभिकल्पना रूपरेखा स्वयम सद्गुरु जी ने किया है। उनका यह मानना है कि इस प्रतिमा के माध्यम से लोगो मे योग के प्रति प्रेरणा मिलेगी इसी परिपेक्ष्य में इस प्रतिमा का नाम आदियोगी शिव है। आदियोगी शिव प्रथम योगी है जिन्होंने योग को प्रतिपादित किया और उनको यानी भगवान शिव को योग का प्रवर्तक कहा गया है। इसलिए उन्हें आदियोगी कहा जाता है। यह प्रतिमा इस्पात से बनाई गई है। और यह भगवान शिव को समर्पित है।