Agastya Samhita का लेखक महर्षि अगस्त हैं ! महर्षि अगस्त्य के ये Agastya Samhita पुरे विश्व भर में विश्विख्यात है ! विद्युत उत्पादन का उत्पादन इसी ग्रन्थ का देन है !
महर्षि अगस्त्य
महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे ! जो आध्यामिक क्षेत्र के बहुत ही महान मुनि मने जाते हैं ! ये महर्षि वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे ! इनका जन्म काशी में श्रावण शुक्ल पंचमी को हुआ था ! आधुनिक टाइम में यह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से जाना जाता है !
वैज्ञानिक ऋषियों के क्रम में महर्षि अगस्त्य का भी नाम सुमार था ! आधुनिक युग में बिजली का आविष्कार माइकल फैराडे ने किया था ! लेकिन इसका श्रोत अगस्त्य ऋषि ही देकर गए थे ! महर्षि अगस्त्य का राजगुरु राजा दशरथ थे !
महर्षि अगस्त्य ने अनेक असम्भव कार्य को अपनी मन्त्र शक्ति से सहज ही कर दिखाया और वे लोगों का कल्याण किया !
कथा
एक बार महातेजस्वी और महातपस्वी ब्रह्मर्षि अगस्त्य जी श्री सुतीक्ष्ण मूनि के आश्रम में पधारे ! सुतीक्ष्ण मुनि ने उनका यथोचित आदर सत्कार किया , उसके बाद संसार से मुक्ति पाने का मार्ग जानने की याचना करने लगा ! महाप्रतापी अगस्त्य जी ऐसे सिद्ध महात्मा थे कि देवताओं के आग्रह से उन्होंने समुद्र को आचमन करके सोख लिया था ! और सूर्य का मार्ग रोक लिया था !
जिस समय राजा नहुष इन्द्र हो गये तब वह ऋषियों द्वारा उठायी हुई पालकी में बैठकर निकले थे, उन ऋषियों में अगस्त्य जी भी पालकी उठाये हुए थे ! अचानक राजा नहुष का पैर महर्षि अगस्त्य जी के शरीर से छ, गया, उसी अपराध पर महर्षि ने नहुष को सर्प बना दिया !
रोचक तथ्य
- एक बार महर्षि अगस्त्य को दक्षिण देश जाना था !तब उन्होंने विन्ध्याचल पर सूर्य का मार्ग रोक लिए , जिससे सूर्य का आवागमन ही बंद हो गया था ! इन्होंने किसी तरह से सूर्य का विन्ध्य पर्वत को स्थिर कर दिया और कहा- ‘जब तक मैं दक्षिण देश से न लौट जाऊ , तब तक तुम रूके रहो ! ऐसा ही हुआ ! विन्ध्याचल नीचे हो गया, फिर अगस्त्य जी नहीं लौटे , अत: विन्ध्य पर्वत उसी प्रकार निम्न रूप में स्थिर रह गया और भगवान सूर्य का सदा के लिये मार्ग प्रशस्त हो गया था !
- अगस्त्य संहिता ग्रन्थ में विद्युत् में उपयोग होने बाला इलेक्ट्रोप्लेटिंग का भी विवरण मिलता है ! अगस्त्य बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पालिश चढ़ाने की विधि निकाली है , अत: इसे अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं !
- पुराणों में यह कथा आयी है कि महर्षि अगस्त्य (पुलस्त्य)- की पत्नी महान पतिव्रता तथा श्री विद्या की आचार्य हैं, जो ‘लोपामुद्रा’ के नाम से विख्यात हैं ! आगम-ग्रन्थों में इन दम्पत्ति की देवी साधना का विस्तार से वर्णन आया है !
Agastya Samhita Mantra
“जलनौकेव यानं यद्विमानं व्योम्निकीर्तितं !
कृमिकोषसमुदगतं कौषेयमिति कथ्यते !
सूक्ष्मासूक्ष्मौ मृदुस्थलै औतप्रोतो यथाक्रमम् !
वैतानत्वं च लघुता च कौषेयस्य गुणसंग्रहः !
कौशेयछत्रं कर्तव्यं सारणा कुचनात्मकम् !
छत्रं विमानाद्विगुणं आयामादौ प्रतिष्ठितम् !
अर्थात उपरोक्त पंक्तियों में कहा गया है कि विमान वायु पर उसी तरह चलता है, जैसे जल में नाव चलती है। तत्पश्चात उन काव्य पंक्तियों में गुब्बारों और आकाश छत्र के लिए रेशमी वस्त्र सुयोग्य कहा गया है, क्योंकि वह बड़ा लचीला होता है !
वायुपुरण वस्त्र :प्राचीनकाल में ऐसा वस्त्र बनता था जिसमें वायु भरी जा सकती थी। उस वस्त्र को बनाने की निम्न विधि अगस्त्य संहिता में है !
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