Ashtanga Hridayam Book Pdf Download

अष्टाङ्ग हृदयम्

अष्टाङ्ग हृदयम् (Ashtanga Hridayam) वाग्भट के द्वारा लिखा गया एक आयुर्वेद ग्रंथ है! इसमें औषधि और शल्यचिकित्सा दोनो का समिलित है , यह ग्रंथ स्वास्थ के आधार पर है की किसी भी मनुष्य को किस तरह से खाना पीना, रहना सहना चाहिए आदि ! ऐसे तो इस ग्रंथ को कब रचना हुआ कोई प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन अनुमानत: माना जाता है कि इस ग्रन्थ का रचनाकाल ५०० ईसापूर्व से लेकर २०० ईसापूर्व तक है!

वाग्भट अपने इस ग्रंथ में आयुर्वेद के सम्पूर्ण विषय- शल्यचिकित्सा, कायचिकित्सा आदि पूरे शरीर एवं आठों अंगों का वर्णन किए है ! उन्होंने अपने इस ग्रन्थ को शरीर स्वास्थ का हृदय से संबोधित किया है !

वाग्भट कौन है?


वाग्भट एक प्रसिद्ध ग्रंथ रचनाकार हैं ,जो अष्टांगहृदय तथा अष्टांगसंग्रह जैसे पवित्र ग्रंथ का रचना किए हैं ! इनका जन्म सिंधु देश में हुआ , ऐसा अष्टांगसंग्रह में दर्शाया गया है ! वाग्भट के पिता का नाम सिद्धगुप्त था ! ये बौद्ध धर्म को माननेवाले थे, ऐसा ग्रंथ में दर्शाया गया है एवं इनके गुरु का नाम अवलोकितेश्वर है !

अष्टांगहृदयम क्यों पढ़ना चाहिए


जैसे कि पहले भी बता चुके हैं की अष्टांगहृदयम एक चिकित्सा ग्रंथ है , इस ग्रंथ में आपलॉगो को शरीर के बारे में पूरी जानकारी मिलेगा की किस तरह से खाना खाना चाहिए ,किस तरह से रहना सहना चाहिए इत्यादि !

अष्टांगहृदयम में कुल 7120श्लोक, 120 अध्याय एवं 6 खण्ड हैं ! अष्टांगहृदयम के छः खण्डों के नाम इस प्रकार हैं-

*चिकित्सास्थान (२२ अध्याय)

  • सूत्रस्थान (३० अध्याय)
  • शारीरस्थान (६ अध्याय)
  • निदानस्थान (१६ अध्याय)
  • कल्पस्थान (६ अध्याय)
  • उत्तरस्थान (४० अध्याय)

इस ग्रंथ में समस्त रोगों की चिकित्सा, पंचकर्म के लिए औषधि का वर्णन, पंचकर्म विधि, हानियों एवं लाभ, उपचार आदि का विधि वर्णन है !

वाग्भट्ट का इस ग्रंथ में निदानस्थान, चिकित्सास्थान, शारीरस्थान, कल्पस्थान तथा उत्तरस्थान में सम्पूर्ण रोगों का निदान, लक्षणों, रोग के भेद आदि सम्बधित विषयों का विस्तृत वर्णन है

गर्भ एवं शरीर सम्बधित विषय का विस्तृत वर्णन है कि गर्भ अवस्था में एक स्त्री को क्या खाना चाहिए, कैसे रहना चाहिए, किस तरह से रहने होने बाले बच्चे पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा !

बालकों में ग्रह विकार, स्त्री ग्रह विकार, स्त्री रोग, बाल रोग, भूत विद्या एवं मानसिक रोग का वर्णन है!

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