Bhavani Ashtakam Pdf Download in Hindi with Lyrics

भवान्यष्टकम् आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित सर्वश्रेष्ठ स्तुति में से एक है ! भगवान आदि गुरु शंकराचार्य निर्गुण-निराकार ब्रम्हा जी के उपासक थे ! आदि गुरु शंकराचार्य ने बहुत सरे कृतिया लिखे हैं लेकिन Bhavani Ashtakam उसमे से बहुत ही महत्व पूर्ण है ! Bhavani Ashtakam में गुरु शंकराचार्य ने माता से अपनी गुहार किये हैं , अपनी अर्ज किये है !

भवान्यष्टक श्रीशंकराचार्यजी द्वारा रचित मां भवानी (शिवा, दुर्गा) का शरणागति स्तोत्र है ! माँ भवानी शरणागतवत्सला होकर अपने भक्त को भोग, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करती हैं ! देवी की शरण में आए हुए मनुष्यों पर विपत्ति तो आती ही नहीं बल्कि वे शरण देने वाले हो जाते हैं !

हे माते , मै दीन हूँ , मै गरीब हूँ मै दुखी हूँ , मेरा आपके बिना कोई सहारा नहीं हैं ! माते मेरा रहा करें !

Bhavani Ashtakam

Bhavani Ashtakam katha in Hindi

एक बार की बात की गुरु शंकराचार्य काशी आए तो वहां उन्हें अतिसार (दस्त) हो गया जिसकी वजह से वे अत्यन्त कमजोर हो गए ! वे ज्यादा कमजोर होकर वे एक स्थान पर बैठे थे ! उन पर कृपा करने के लिए भगवती अन्नपूर्णा एक गोपी का वेष बनाकर दही बेचने के लिए आई ,उन्हें देखकर पात्र लिए वहां आकर बैठ गयीं ! कुछ देर बाद उस गोपी ने कहा-‘स्वामीजी ! मेरे इस घड़े को उठवा दीजिए ! स्वामीजी ने कहा-‘मां! मुझमें शक्ति नहीं है, मैं इसे उठवाने में असमर्थ हूँ !

मां ने कहा-‘तुमने शक्ति की उपासना की होती, तब शक्ति आती ! शक्ति की उपासना के बिना भला शक्ति कैसे आ सकती है?’ यह सुनकर आदि गुरु शंकराचार्य की आंखें खुल गयीं !और उन्हें अपना गलती का अहसास हो गया ! तब उन्होंने शक्ति की उपासना के लिए बहुत सारे स्तोत्रों की रचना कीया ! आदि गुरु शंकराचार्यजी द्वारा चार पीठ भी स्थापित किया गया हैं ! चारों में ही चार-चार शक्तिपीठ हैं !

Bhavani Ashtakam Lyrics in hindi

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता !
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि !!1!!

हे भवानि ! न पिता, न माता, न सम्बन्धी , न भाई,न बहन , न दाता, न पुत्र, न पुत्री, न भृत्य, न सेवक , न स्वामी, न पति न स्त्री, न विद्या , न ज्ञान और वृत्ति ,न व्यापार ही मेरा है ! हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! तुम्ही मेरा सहारा हो !

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः !
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि !!2!!

हे भवानी माँ ! जन्म मरण के इस अपार भवसागर में मैं पड़ा हूँ, भवसागर के महान दु:खों से भयभीत हूँ, पाप , लोभी, कामनायों से भरा , मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में जकड़ा हुआ हूँ, हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! तुम्ही मेरा सहारा हो !

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥३॥

हे भवानी ! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानयोग मार्ग का ही मुझे कोई जानकारी है, तन्त्र मन्त्रों और स्तोत्र का भी मुझे कोई ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं को मुझे कोई जानकारी नहीं है ! हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! तुम्ही मेरा सहारा हो !

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥४॥

हे भवानी ! मई न पुण्य जानता हूँ, न ही तीर्थ , न मुक्ति का मुझे कोई पता है न लय का ! भक्ति और व्रत का मुझे कोई जानकारी है ! हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! तुम्ही मेरा सहारा हो !

कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥५॥

मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहने वाला (कुसंगी ) , दुर्बुद्धि, दुष्टदास, कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण, नीच कार्यो में ही पर्वत रखता हूँ , कुत्सित दृष्टि रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ, हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! तुम्ही मेरा सहारा हो !

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥६॥

हे भवानी ! मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, को नहीं जानता हूँ , सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य कोई भी देवता को नहीं जानता हूँ , हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! तुम्ही मेरा सहारा हो !

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥७॥

हे भवानी ! तुम विवाद, विषाद में , प्रमाद, परदेश, जल में , अग्नि में , पर्वत में , वन के मध्य तथा शत्रुओं के बिच में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! तुम्ही मेरा सहारा हो !

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥८॥

हे भवानि ! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, सदा से रोगी हूँ , मै अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूंगा, विपति से ग्रस्त और नष्ट हूँ, हे देवि ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ! अब तुम्ही मेरा सहारा हो !

Bhavani Ashtakam Benefits in hindi (भवानी अष्टक पाठ के फायदे )

आज कल हर कोई किसी न किसी दुःख दर्द से परेशान है , हर कोई चाहता की हमारे पास धन – दौलत हो ! कोई दुःख दर्द न रहे , लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है ! कही ना कही कमी रह जाता है ! ऐसे में आप भवानी अष्टक पाठ करें ! इस पथ से खुश होकर बह्वानी माँ अपने भक्त को प्रचुर मात्रा धन वैभव और सुख शांति की प्राप्त होती है ! बहुत सरे धन की मालिक बना देती हैं , एवं अपने भक्त के सारे विप्तियों दूर कर देते है !

Download Bhavani Ashtakam

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