महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित Brahma Sutra बड़ा ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है ! ब्रह्मसूत्र भारतीय दर्शन के 6 दर्शनो में से एक हैं , इसे वेदांत सूत्र, उत्तर मीमांसा सूत्र, शारीरिक सूत्र और वेदांत दर्शन इत्यादि के नाम से भी जाने जाते हैं ! इसके रचयिता बाद बादरायण हैं जो वेदव्यास के नाम से भी जाने जाते हैं ! इसमें शब्दों में ब्रह्म के स्वरूप का निरूपण किया गया है इसलिए इसका नाम Brahma Sutra है !
इस जगत के जन्म आदि यानी उत्पत्ति स्थिति और प्रलय जिससे होते हैं वह ब्रम्ह है ! यहां कुछ एक शब्दों में परम ब्रह्म के स्वरूप का निरूपण किया गया तो Brahma Sutra बहुत ही महत्वपूर्ण जनता है ! यह ग्रंथ वेद के परम सिद्धांत को दर्शाती है इसलिए इसे वेदांत दर्शन भी कहा जाता है ! वेद के पूर्व भाग में कर्मकांड का विषय है, उसकी समीक्षा आचार्य जय मुनि ने अपने पूर्व मीमांसा के सूत्र में की है !
मीमांसा का अर्थ है गंभीर मनन करना विचार करना उस विषय पर तो ,उसी प्रकार सूचियों के उत्तर भाग में उपासना एवं ज्ञान कांड है इन दोनों की मीमांसा ब्रह्मसूत्र में की है यानी उपासना का और ज्ञान का इस पर गंभीर विचार वेदव्यास जी ने ब्रह्मसूत्र में किया है ! इसलिए ब्रह्मसूत्र को उत्तर मीमांसा या उत्तर मीमांसा सूत्र भी कहते हैं ! सनातन धर्म मैं किसी भी सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए तीन ग्रंथ का प्रमाण मानना है वह उपनिषद , श्रीमद्भगवद्गीता एवं ब्रह्मसूत्र इन्हें प्रस्थानत्रई कहा जाता है !
प्रस्थानत्रई क्या है ?
प्रस्थानत्रई में उपनिषद को श्रुति प्रस्थान कहते हैं ,गीता को स्र्मिति प्रधान कहते हैं और ब्रह्मसूत्र को न्याय प्रस्थान कहते हैं ! ब्रह्मसूत्र न्याय प्रस्थान कहने का अर्थ है यह वेद को पूर्णता तक पूर्वक ढंग से प्रस्तुत करता है यही कारण है कि भारतीय दर्शन में ब्रह्मसूत्र को पहला स्थान दिया गया है !
वेदांत का अर्थ
वेदांत का अर्थ वेदांत शब्द का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंत, सर्वप्रथम उपनिषदों के लिए ही वेदांत शब्द का प्रयोग हुआ करता था ! क्योंकि वेद का उत्तर तथा अंतिम भाग है उपनिषद किंतु बाद में उपनिषदों के सिद्धांत को आधार मानकर जिन विचारों का विकास हुआ उनके लिए भी वेदांत शब्द का प्रयोग होने लगा ! इसलिए उपनिषदों के लिए भी वेदांत का प्रयोग होता था लेकिन साथ ही जिन महात्माओं ने वेद के सिद्धांत अनुसार अपना सूत्र लिखा उसे भी वेदांत कहा जाने लगा जिसमें वेदव्यास जी का ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित है !
Brahma Sutra की रचना
ब्रह्मसूत्र में चार अध्याय हैं जिनके नाम है
- समन्वय
- अविरोध
- साधन
- फल
- प्रथम अध्याय का नाम समन्वय है चमन में इस संबंध में अध्याय इसलिए कहा जाता है क्योंकि वेद में या कहीं उपनिषद में परस्पर दो विरोधी मत भी हैं, इसलिए उनका समन्वय यानी वे दोनों ही सही है ऐसा तर्क द्वारा इस प्रथम अध्याय में बताएं गया है !
- दूसरे अध्याय का नाम है अविरोध भी इस अध्याय में यह सिद्ध किया गया है, कि वेद में या उपनिषद के वाक्य में विरोध नहीं है !
- तीसरे अध्याय का नाम है साधन इसमें ब्रह्म प्राप्ति के उपाय मुक्त के बजरंग और अंतरंग साधन बताए गए हैं
- चौथे अध्याय का नाम फल है इसमें मोक्ष , स्वर्ग ,सगुण और निर्गुण उपासना के फल पर विवेचन है !
Brahma Sutra का संरचना
ब्रह्मसूत्र के चार अध्याय है ,प्रत्येक अध्याय के चार बातें इस प्रकार ब्रह्म सूत्र में 16 बाद है ब्रह्म सूत्र पर अनेक महापुरुषों ने भाष्य लिखा ! लेकिन कुछ महापुरुषों ने कुछ सूत्रों को जोड़कर एक सूत्र कर दिया तथा कुछ सूत्रों का विभाजन कर दो सूत्र कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप सूत्रों की संख्या 16 पदों में भिन्न-भिन्न है ! जैसे जब निंबार्काचार्य जीव ब्रह्म सूत्र पर भाषा लिख रहे थे ! तब उन्होंने प्रमुख सूत्र के पहले अध्याय के चौथे बाद के 27 में सूत्र को जो है आत्मा के परिणाम आर्ट्स को एक सूत्र ना मानते हुए दो सूत्र माना !
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