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जिस तरह समुद्रशास्त्र में किसी व्यक्ति के शरीर के विभिन्न अंगों के आधार पर इंसान के उसका प्रकृति के बारे में बताया जाता है ! उसी प्रकार Brihat Samhita में भी ऐसी बहुत सी बातों का वर्णन किया गया हैं ! Brihat Samhita के अनुसार लड़कियों की चाल , चलन से उनके व्यवहार और आदतों का पता लगाया जा सकता हैं ! तो चलिए जानते हैं किस तरह से आप किसी की चाल चलन से उसके बारे में जान सकते हैं !
तेज चलने वाली लड़कियां
ज्योतिष के अनुसार ऐसी लड़कियों पर मंगल का प्रभाव से प्रभाबित होती है ! ऐसा बर्णन किया गया है, बहुत-सी लड़कियां ऐसी होती हैं जिन्हें तेज-तेज चलने की आदत होती है ! ऐसी लड़कियों को कहीं भी पहुँचने की बहुत जल्दीवाजी होती है लेकिन यह भी कहा जाता है की तेज़ चलने वाली लड़कियों में मंगल ग्रह के प्रभाव से एनर्जी बहुत होती है ! ऐसी लड़कियो में आत्मविश्वास बहुत भरा रहता है और साथ ही वो साहसी भी होती हैं ! इस तरह को लड़कियां अपनी जीवन में कोई भी परेशानी का सामना अच्छी तरह कर सकती हैं !
वराहमिहिर कौन थे ?
बराहमिहिर पाचवी छठी शताव्दी के भारतीय ज्योतिष थे , गणितज्ञ थे और खोगोलग्य भी थे ! बराहमिहिर का जन्म 499 इश्वी उजैन के कपिथ नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था ! बराहमिहिर के पिता का नाम आदित्य दास था ,जो सूर्य देव के भक्त थे ! आदित्य दास ने ही अपने बेटे मिहिर का ज्योतिस विद्या का अध्यन कराया . बराहमिहिर बचपन से ही बहुत ही तेज छात्र थे !
बराहमिहिर जब पढने के लिए पटना पहुचे तब उनका मुलाक़ात महान गणितज्ञ आर्यभट से हुआ ! आर्यभट के ही सलाह से बराहमिहिर गणितज्ञ और खगोल वैज्ञानिक बन गए ! उस समय वहां गुप्त वंश का शासक उपगुप्त का शासन था . जिनके प्रोत्साहन से कला विज्ञान और संस्कृत को प्रोत्साहन मिला था ! अब विद्वान लोग से बराहमिहिर का मुलाक़ात होने लगा इसे उन्हें अपनी शिक्षा में काफी सहायता मिला !
बराहमिहिर ने वेदों का भी काफी अध्यन किया , उन्हें अलौकिक चीजो में अन्ध विश्वास नहीं था ! वो चमत्कारी विज्ञान का महत्त्व दिया करते थे ! उन्होंने भी खगोल विज्ञान पर काफी अध्यन किया था और पृथ्वी गोल है ये बात इन्होने ने ही बताया था !
वृहत्संहिता में १०६ अध्याय हैं !
- परिचय,
- ज्योतिष
- आदित्यचार
- चंद्राकार
- राहुखर
- भूमाचार
- बुद्धचर
- बृहस्पति-सप्तर्षि
- कूर्मविघ
- नक्षत्रव्यूह
- ग्रहभक्ति योग
- ग्रह युद्ध
- शशिग्रहसमागम
- ग्रहवर्षशाला
- ग्रहश्रृंगटक
- गर्भना
- गर्भधारण
- प्रसार
- रोहिणीयोग
- -रोहिणी योग
- आषाढ़ी योग
- वायु चक्र
- सद्योवर्धन (वर्षा का पूर्वानुमान),
- कुसुमलता (समृद्धि, आरोग्य, वर्षा, अकाल की भविष्यवाणी आदि)
- संध्यालक्षण (शाम के समय प्रकट होने वाले विभिन्न पात्रों के आधार पर संभावित घटनाओं की भविष्यवाणी
- दिगदाह
- भूकंप
- उल्का
- डिटेक्शन (सूर्य और चंद्रमा के चारों ओर कभी-कभी देखी जाने वाली गोलाकार प्रकाश रेखा)
- संवेदीकरण
- गंधर्वनगरलक्षणगिनती समकक्ष
- मासिक धर्म (धूल भरी आंधी के लक्षण)
- वात्या (आकाशीय बिजली)
- जयक-जातक
- नक्षत्रश्याणगुण्यने वित्त
- इंद्रध्वज
- नी-नीरजनविधि
- मिनीकंपोनेंट
- उत्पादनाध्याय:
- मैं-मयूराकात्रा
- पुष्यसन (पुष्य मास में राजाओं द्वारा किया जाने वाला मंगलासन)
- पट्टा (राजाओं द्वारा पहने जाने वाले मुकुट)
- खरगलक्षन (छिद्रों के लक्षण)
- अज्ञेयवाद (शरीर के अंगों की जांच से प्राप्त व्याख्य पिटकलक्षण (मुँहासे से संबंधित पैरॉक्सिज्म)
- वास्तुकला
- वृक्षायुर्वेद (बागवानी)
- उत्कर्ष (मंदिरों से संबंधित)
- वज्रलेखन (मजबूत वज्रलेप का निर्माण)।
- प्रतीक (मंदिरों में स्थापित की जाने वाली मूर्तियों से संबंधित)
- वन प्रवेश (जंगल में प्रवेश)
- मूर्ति (मूर्ति की स्थापना)
- गो-श्व-पुक्कुट-कोरम-खागा-छावा-गजानन लक्षण
- पुरुष-पुरुष विशेषताएं
- पंचपुरुष या पंचमहापुरुष (पांच महापुरुषों के लक्षण)
- कन्यालक्षणा (महिलाओं से संबंधित)
- वस्त्र भेदी (कपड़े फटने से संबंधित शकुन)
- चामरलक्षण (चमारों से संबंधित)
- छत्रलक्षन (छतरियों से संबंधित)
- स्त्रीत्व
- व्यक्तित्व विकास
- कैंडरपिका
- गलाना
- उत्तर: पुंस्त्रसमायोग (संभोग से संबंधित कुछ विचार)
- बेडसोर (बिस्तर से संबंधित)
- मुक्ता पद्मारामगरकाटनं लक्षनम्
- दीपलक्षनाम
- डेंटिन-लेरिंजियल-लेरिंजियल लक्षण
- विविध शुकानानी !
- प्राकृतिक दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण तत्व – जनसमाया समयाथ:
- तारीख
- जन्माक्षत्र नुगुनयेन भविष्कथानम्
- अंतरिक्ष यात्री विभाग:
- विवाहपाल-विवाहप्रसंगे ग्रहनक्षत्रदीनन स्थिति गतीराल्म्ब्य पूर्वानुमयनी भावितवियानी; विविध
- रूपास्त्र (नक्षत्र)
- उपसंहार !
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