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आज के इस लेख में आपको बहुत ही चर्चित लेखक का उपन्यास के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसका नाम Budi Kaki है , Budi Kaki मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिख गया उपन्यास है ! मुंशी प्रेमचंद को उर्दू और हिंदी के भारतीय लेखकों में से एक थे, जिन्होंने उपन्यास के क्षेत्र में अपना योगदान देते हुए अनेकों यथार्थवादी बहुचर्चित और प्रसिद्ध उपन्यास लिखे है !
Budi Kaki सरांश
बूढ़ी काकी में जिह्वा स्वाद के सिवा और कोई रिश्ता शेष न थी और ना अपने कस्ट पर रोने के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा है ! पृथ्वी पर पड़ी रहती और घरवाले कोई बात उनकी शिक्षा के प्रति पूर्ण करते हैं ! भोजन का समय चल जाता है उसका मांग न पूरा होता तो वह गला फाड़ फाड़ कर रोती थी ! उनके पति देव को स्वर्ग सिधारे कालांतर हो चुका था ! बेटे का भी देहान्त हो चुका था, अब भतीजे के अलावा और कोई ना था उसी भतीजे के नाम पर उन्होंने अपनी सारी संपत्ति लिख दी थी !
काकी को एक भतीजे के सिवा और कोई सहारा नहीं था ! ताकि अपना सर्वस्व अपने भतीजे को इस आशा में सौंप देती है , कि वह उनका भली प्रकार से देखभाल करेगा और भतीजे ने भी संपत्ति ना मिलने तक खूब वादे किए किंतु संपत्ति मिलने के बाद वह अपने वादों से मुकर गया ! इसका चित्रण प्रेमचंद जी ने इस प्रकार किया है भतीजे ने संपत्ति लिखते समय खूब लंबे चौड़े वादे किए किंतु वादे कुत्तों के दलालों के दिखाए हुए सब्जबाग थे !
वृद्धावस्था में ज्यादातर लोग अकेले रहते हैं , वह अपनी मन की स्थिति को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते हैं ! घर के सभी सदस्य अपने अपने कामों में व्यस्त होने के कारण विद लोगों के साथ समय नहीं बिता पाते हैं ! और वृद्धजनों के मन में चल रहे अंतर्द्वंद के बारे में नहीं जान पाते हैं !
दूसरे से बात करने के लिए तरसते हैं ,और अपनी भावनाओं को एक दूसरे के साथ बांटना चाहते हैं ! किंतु वो किसी दूसरे से बात करते देख उनके बच्चे उन्हें डांटते और खूब उलाहना देते हैं ! काकी इसी प्रकार के अकेलेपन के दर्द से गुजरती है ! क्योंकि घर के लोग तो उनसे बात भी नहीं करना चाहती और ना ही किसी से बात करने देते हैं ! भतीजा और उनकी पत्नी को लगता कि इससे उनकी इज्जत पर आंच आ जाएगी और वह उससे बचने के लिए काफी खो जाते हैं !
यदि द्वार पर कोई भला आदमी बैठा हो और बूढ़ी काकी उस समय अपना राग अलापने लगती तो आग हो जाते हैं ! और घर में जाकर उन्हें जोर से दाटते हैं , वृद्धा वास्ता में लोग प्रेम और स्नेह के आकांक्षी होते हैं और जहां माता-पिता का व्यवहार वृद्धा के प्रति संवेदना ने है ! वहां बच्चे भी उसी अनुकरण करते हैं इसी प्रकार का संदर्भ बूढ़ी काकी कहानी में है ! काकी के प्रति माता-पिता के दुर्व्यवहार देखकर बच्चे भी काकी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं ! और उन्हें हमेशा परेशान करते हैं ! कोई चुटी काट कर भाग जाता तो कोई उन पर पानी की कुली कर देता ! तब काकी चीख मारकर रोटी, वृद्धावस्था में अधिकांश लोगों के मन में खाने की इच्छा प्रबल होती है ! अन्य किसी सुख सुविधा के बारे में नहीं सोचते हैं कि उन्हें घर में सम्मान पूर्वक समय-समय पर भरपेट खाने को मिले !
काकी को समय पर भोजन नहीं मिलता तो वह जोर-जोर से चिल्लाकर रोती थी ! भोजन का समय टल जाता या उसका परिणाम पूर्णा होता था बाजार से वस्तु आती ना मिलती तो रोने लगती थी ! बुढ़ापा बचपन का पूरा गमन करता है ! बाल्यावस्था की तरह व्यवस्था में भी भोजन की प्रबल इच्छा होती है और अगर घर में कोई विवाह समारोह हो तो उसमें भिन्न भिन्न प्रकार के पकवान बनते देख कर उनके दिलों के मन में खाने की इच्छा होती है !
काकी कहानी में भी देखने को मिलता है कि घर में तिलक का माहौल है इसमें काफी मेहमान आए और किस्म किस्म के पकवान बनाए जा रहे हैं ! काकी मन ही मन का के पकवानों को खाने की कल्पना किस प्रकार करती है पहले तरकारी से शुरू करना है फिर पुड़िया खायेंगे फिर दही और शक्कर से कचोडीया रायते के साथ मजेदार मालूम होगी ! चाहे कोई बुरा माने चाहे भला मैं तो मांग मांग कर खाऊंगी ! अधिकांश लोग वृद्धावस्था में भूख को काबू करने में असमर्थ होते हैं कभी-कभी अपनी भूख को मिटाने के लिए समाज परिवार एवं मर्यादा को दांव पर लगा देते हैं !
काकी के घर वाले उन्हें भोजन नहीं देते और सब लोग खा पीकर सोने चले जाते हैं ! इसी का आधी रात को भूख से तड़प रही का किला मणि होने पर भी अपने भूख को मिटाने के लिए लोगों का जूठा तक खाने के लिए विवश हो जाती है !
काकी ने आधी रात को सारे लोगो को जूठा खाने लगी तो भतीजे की बीबी ने देखा तो बहुत पछतावा हुआ ! अपने परिवार के सदस्यों के साथ हुए भी उनकी गलतियों को उदार भाव से क्षमा कर देते हैं ! कभी-कभी इसका एहसास परिवार के सदस्यों को होने पर भी आत्मग्लानि से पीड़ित होते हैं इसका उल्लेख बूढ़ी काकी काका की खातिर अपने फैसले पर अफ़सोस कि आज मैंने लोगों को भोजन कराया एवं काकी को अच्छे से रखने लगे !
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