Gheranth Samhita तिन हठयोग ग्रंथो में सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है , इसीकी रचना लगभग 17 वि सताव्दी से आसपास किया गया था ! Gheranth Samhita के अलावा दो और ग्रन्थ हैं हठयोग प्रदीपिका और शिवसंहिता कहा जाता है ! तीनो ग्रंथो में यह सर्वाधिक विशाल एवं परिपूर्ण ग्रन्थ है ! पाणिनि के योग दर्शन में अष्टांग अवधारणा प्राप्त होती है वैसे ही इस ग्रन्थ में सप्तांग योग अवधारणा प्राप्त होता है !
Gheranth Samhita हठयोग का सबसे प्राचीन और प्रथम ग्रन्थ है , जिसमे योग ,परायणं , निति , मुद्रा , आसन , मुद्रा , , निति , धौति आदि क्रियाओं का वर्णन मिलता है !
Gheranth कौन थे ?
महर्षि Gheranth एक सिद्ध हठयोगी थे ! Gheranth विष्णु जी का बहुत बड़ा भक्त थे , उनकी कृति या लेखन से पता लगता है की वह वैष्णव धर्म को मानने बाले थे ! क्योकि वो अपने ग्रन्थ में ज्यादातर विष्णु जी का ही जिक्र किया है !
Gheranth Samhita क्या है ?
Gheranth Samhita हठयोग पर लिखा गया एक ग्रन्थ है ! जिसे महर्षि Gheranth ने लिखा है ! Gheranth Samhita का निर्माण महर्षि Gheranth और चंड कपालि के बिच के हुए शारीर की स्वास्थ्य चर्चा पर हुई है ! इस ग्रन्थ में ज्यादातर भगवन विष्णु का चर्चा किया गया है , इस ग्रन्थ में एक दो बार नारायण का चर्चा किया गया है ! इस ग्रन्थ में शरीर से लेकर आत्म ज्ञान तक की जानकारी दिए हैं !
कोई भी जगह पर योग विद्या की चर्चा होती हैं वहां पर घेरण्ड संहिता का वर्णन अवश्य होता है !
घेरण्ड संहिता के योग का उद्देश्य
बहुत से ऐसे लोग जो हैं जो योग करना चाहते हैं लेकिन उन्हें कोई भी ऐसे बुक नहीं मिल पाता था , ऐसे में महर्षि घेरण्ड अपनी योग विद्या का किताब का लेखन शुरू कर दिया और अपनी उपदेश से बहुत से लोगो को स्वास्थ ठीक करने में सफल रहे थे ! इसमें योग करने का बहुत बड़ा लाभ बताया गया है ! कोई भी व्यक्ति इस योगबल से उस तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है !
घेरण्ड संहिता में योग का स्वरूप :-
महर्षि घेरण्ड ने घेरण्ड संहिता में हठ योग को सबसे बड़ा बल मानते हुए लोगो को तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए घेरण्ड संहिता का उपदेश दिया है ! महर्षि घेरण्ड के योग को घटस्थ योग के नाम से भी जानते हैं ! घेरण्ड संहिता को मुख्यतः सात (7) भागो में बाटा गया है , जो इस प्रकार हैं –
- षट्कर्म
- आसन
- मुद्रा
- प्रत्याहार
- प्राणायाम
- ध्यान
- समाधि !
प्रथम अध्याय :– घेरण्ड संहिता के पहले अध्याय में महर्षि घेरण्ड व चण्डकपालि राजा के बीच हुए बातचीत को दर्शाया गया है ! राजा चण्डकपालि महर्षि घेरण्ड को प्रणाम करते हुए , बोलते हैं की आप मुझे तत्व ज्ञान को प्राप्त करने वाली योग विद्या को बताइए ! तब महर्षि घेरण्ड ने उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें योग विद्या का ज्ञान देना प्रारम्भ करते हैं !
योग के सप्त साधनों का वर्णन इसी में किया गया है तथा उनके लाभों की चर्चा भी इसी अध्याय में कीया गया है ! योग के सभी अंगों के लाभ इस प्रकार हैं –
- षट्कर्म = शोधन
- आसन = दृढ़ता
- मुद्रा = स्थिरता
- प्रत्याहार = धैर्य
- प्राणायाम = लघुता / हल्कापन
- ध्यान = प्रत्यक्षीकरण / साक्षात्कार
- समाधि = निर्लिप्तता / अनासक्त अवस्था
- षट्कर्म वर्णन :-
षट्कर्म मुख्य रूप से छः भाग हैं ! लेकिन इस किताब आगे उनके अलग – अलग विभाग भी मिलता है ! जो इस प्रकार है –
- धौति
- मूलशोधन
- बस्ति
- नेति
- त्राटक
- लौलिकी
धौति :- धौति के भी चार भाग माने गए हैं ! और आगे उनके भागों के भी विभाग किये जाने से उनकी कुल संख्या 13 हो गई है –
धौति के चार प्रकार :-
- अन्तर्धौति
- दन्त धौति
- हृद्धधौति
- मूलशोधन !
अन्तर्धौति के प्रकार :-
- वातसार धौति
- वारिसार धौति
- अग्निसार धौति
- बहिष्कृत धौति !
मूलशोधन :- मूलशोधन धौति के अन्य कोई भाग नहीं किए गए हैं !
बस्ति :- बस्ति के दो प्रकार होते हैं –
- जल बस्ति
- स्थल बस्ति !
नेति :- नेति क्रिया के दो भाग किये गए हैं –
- जलनेति
- सूत्रनेति !
लौलिकी :- लौलिकी अर्थात नौलि क्रिया के तीन भाग माने जाते हैं –
- मध्य नौलि
- वाम नौलि
- दक्षिण नौलि !
त्राटक :- त्राटक के अन्य विभाग नहीं किये गए हैं ! वैसे इसके तीन भाग होते हैं लेकिन वह अन्य योगियों के द्वारा कहे गए हैं !
- कपालभाति :- कपालभाति के तीन भाग होते हैं –
- वातक्रम कपालभाति
- व्युत्क्रम कपालभाति
- शीतक्रम कपालभाति !
द्वितीय अध्याय :-
घेरण्ड संहिता के दूसरे अध्याय में आसनों के बारे बताया गया है ! महर्षि घेरण्ड का मानना है कि संसार में जितने भी जीव – जन्तु हैं, उतने ही आसन है ! भगवान शिव के अनुसार चौरासी लाख (8400000) जिव जन्तु है , उस अनुसार 8400000 आसन हुए , उनमें से उन्होंने 32 को ही श्रेष्ठ माना जाता है ! यहाँ पर महर्षि घेरण्ड कहते हैं कि उन 32 श्रेष्ठ आसन अति महत्व पूर्ण होते हैं ! अतः घेरण्ड संहिता में कुल बत्तीस आसनों का वर्णन इस तरह है –
- सिद्धासन,
- पद्मासन,
- भद्रासन,
- मुक्तासन,
- वज्रासन,
- स्वस्तिकासन,
- सिंहासन,
- गोमुखासन,
- वीरासन,
- धनुरासन,
- मृतासन / शवासन,
- गुप्तासन,
- मत्स्यासन,
- मत्स्येन्द्रासन,
- गोरक्षासन,
- पश्चिमोत्तानासन,
- उत्कट आसन,
- संकट आसन,
- मयूरासन,
- कुक्कुटासन,
- कूर्मासन,
- उत्तानकूर्मासन,
- मण्डुकासन,
- उत्तान मण्डुकासन,
- वृक्षासन,
- गरुड़ासन,
- वृषासन,
- शलभासन,
- मकरासन,
- उष्ट्रासन,
- भुजंगासन,
- योगासन
तृतीय अध्याय : –
तीसरे अध्याय में योग की मुद्राओं का वर्णनमिलता है ! मुद्राओं का अभ्यास करने से शरीर में स्थिरता आ जाता है ! घेरण्ड संहिता में कुल पच्चीस (25) मुद्राओं का उल्लेख किया गया है !
पच्चीस मुद्राओं के नाम इस प्रकार हैं –
- विपरीतकरणी मुद्रा,
- वायवीय धारणा,
- आकाशी धारणा,
- अश्विनी मुद्रा,
- महामुद्रा,
- नभोमुद्रा,
- उड्डियान बन्ध,
- जालन्धर बन्ध,
- मूलबन्ध,
- महाबंध,
- महाबेध मुद्रा,
- खेचरी मुद्रा,
- योनि मुद्रा,
- वज्रोली मुद्रा,
- शक्तिचालिनी मुद्रा,
- तड़ागी मुद्रा,
- माण्डुकी मुद्रा,
- शाम्भवी मुद्रा,
- पार्थिवी धारणा,
- आम्भसी धारणा,
- आग्नेयी धारणा,
- पाशिनी मुद्रा,
- काकी मुद्रा,
- मातङ्गी मुद्रा,
- भुजङ्गिनी मुद्रा !
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