Jaimini Astrology या भविष्यवाणी को प्रकाशित करने में ऋषि जैमिनि का प्रमुख भूमिका है ! ऋषि जैमिनि के अनुसार कारक, राशियों की द्रष्टियां, राशियों कि दशाओं, तथा दशाओं का क्रम निश्चित नहीं हो सकता है ! तथा इसके साथ ही दशाओं की अवधि भी हमेशा स्थिर नहीं है, यह बदलती रहती है ! महर्षि जैमिनी (Saga Jaimini) ने जिस ज्योतिष पद्धति को विकसित किया उसे जैमिनी ज्योतिष ( Jaimini Astrology) के नाम से जानते है !
Jaimini Astrology में फलक. थन के लिए कारक ग्रह, राशियों की दृष्टि, चर दशा अर्थात राशियों की दशा-अंतर्दशा, कारकांश, पद और उपपद लग्नों का उपयोग सकते है, जबकि अन्य पद्धतियों में भावों के स्वामी, ग्रहों की दृष्टि, ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर का उपयोग हो सकता है !
Who is Jaimini ? ( जैमिनी कौन थे ? )
जब हमारी दुनिया में विज्ञानं नहीं था , तो हमारे यहाँ प्राचीन सभ्यता में ऋषियों और मुनियों ने भविष्य के वारे में आंकलन किया था और अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर बहुत सारे ज्योतिषशास्त्र और कई प्रकार के अनुसंधान में प्रयोग किये ! ऋषि पराशर और जैमिनी (Saga Jaimini) भी उन्ही महान ज्योतिष शास्त्रियों में प्रमुख थे ! जिन्होंने ज्योतिषशास्त्र (Jaimini Astrology Shashtra) में कई महत्वपूर्ण प्रयोग किये !
जैमिनी ज्योतिष में कारकों को कैसे जानें
Jaimini Astrology में ऋषि जैमिनि बताते हैं की राहु और केतु को कारकों की श्रेणी में नहीं रखा गया है, जैमिनी ज्योतिष में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र ओर शनि को कारक की श्रेणी में रखा जाता है. यह सभी सात ग्रह कुण्डली में किसी न किसी कारक का प्रतिनिधित्व करते हैं, कारकों का निर्धारण ग्रहों के अंशों के आधार पर ही हो पाता है !
( Karak and Aspects according to Jaimini Astrology) कारक और दृष्टि
इसमें राहु और केतु को छोड़कर सभी सात ग्रहों को उनके अंशों के अनुसार विभिन्न कारक के नाम से जानते है ! जिस ग्रह भी का अंश सबसे अधिक रहता है जैमिनी ज्योतिष में उसे आत्मकारक कहा जाता है ! आत्मकारक के बाद आमात्यकारक और इसी क्रम में भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और दाराकारक रहती है !
(Pada Lagna according to Jaimini Astrology) पद लग्न
जैमिनी ने अपने जैमिनी ज्योतिष पद्धति में लग्नेश लग्न स्थान से जितने भाव आगे स्थित किया गया है, उस प्रकार से इश्मे उतने ही भाव दिया जाता जितना की उसका महत्व है और उसे पद या अरूढ़ लग्न के नाम से जानते है !
(Rashi Antardasha Jaimini Astrology) राशियों की दशा अन्तर्दशा
ज्योतिष की अन्य विधियों में जहां राशि स्वामी, ग्रहों की दृष्टि एवं ग्रहों की दशा अंतर्दशा और गोचर का विचार किया जाता है वहीं जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Jyotish) में राशियों को प्रमुखता दिया जाता है ! इस विधि में राशियों की दशा और अन्तर्दशा ( Antardasha ) का विचार किया गया है ! प्रत्येक राशि की महादशा में अंतर्दशाओं का क्रम उसी प्रकार होता है जैसे महादशाओं का. इस विधि में राशियों की अपनी महादशा सबसे अंत में आती है !
(Astrological Yoga according to Jaimini Astrology) जैमिनी ज्योतिष के योग
जिस तरह से वैदिक ज्योतिष में योग महत्वपूर्ण है ठीक उसी तरह जैमिनी ज्योतिष में भी योग महत्वपूर्ण हैं ! इस विधि में योगो के नाम तथा उसके बीच सम्बन्ध को अलग प्रकार से दर्शाया गया है जो इस तरह है – आत्मकारक और अमात्यकारक की युति, आत्मकारक और पुत्रकारक की युति, आत्मकारक और पंचमेश की युति, आत्मकारक और दाराकारक की युति, अमात्यकारक और पुत्रकारक की युति इसी क्रम में अमात्यकारक और अन्य कारकों के बीच युति सम्बन्ध बनता है. इन युति सम्बन्धों के आधार पर शुभ और अशुभ स्थिति को जाना जाता है !
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