Kalika Purana में माँ काली के विभ्भिन रूपों का वर्णन किया गया है , और माँ काली के सभी धार्मिक कथायो का विवेचन किया गया है ! इस Kalika Purana को 9 दिनों में ख़त्म कर दिया जाता है ! शिव महा पुराण और श्री भागवत कथा में जिन कथायो का हम दर्शन करते हैं ,उन कथायो का अध्यात्मिक ज्ञान हम इस पुराण से प्राप्त कर सकते हैं !
कलिका पुराण (Kalika Purana) में क्या है ?
इस कलिका पुराण के प्रथम खण्ड में माँ काली का स्वरुप , काली साधना , काली की महिमा ,काली का अवतरण वर्णन , काली स्तुति वर्णन एवं माँ काली की अन्य कथाये वर्णित है ! इस पुराण के अंतिम उपन्सना खण्ड में माँ का नयन वर्णन , माँ काली के साधना मन्त्र ,काली अपराध क्षमा क्षमापन सहोत्र तथा अन्य पूजा दी गयी हैं !
कलिका पुराण (Kalika Purana) का फायदे
ऐसे भक्तो का भक्ति प्राप्त होता है जो मात्र दूध ग्रहण करके माँ का उपवाश करते हैं , कोई दूध ही ग्रहण करके ऐसी सिध्धि प्राप्त करता है की वो काल को भी जित जाता है ! माँ काली के उपाशक को मौत को हरने वाला यम भी अपने साथ नर्क में नहीं ले सकता है ! यानि की माँ काली के उपाशक को हमेश स्वर्ग का प्राप्त होता है ! इसीलिए काली को कक्षिना काली भी कहा जाता है !
श्री काली की उपश्ना से साडी कस्ट उसी प्रकार से नस्त हो जाते हैं जैसे जलता हुआ आग में सभी पत्ते जल जाते हैं ! काली के उपशना करने वाले व्यक्ति का वाक्य गद्य मई और पद्यमइ हो जाता है !इस कालिका पुराण का पाठ करने वाले शाधक सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं !
माँ काली का वर्ण श्याम है ,जिसमे ब्रन्ह्मंद का सभी रंग समिलित हैं , वे व्रम्ह स्वरुप्नी एवं वाल्यादात्री हैं ! भागवाती काली अपने उपशको पर ध्यान एवं उनका कल्याण करने वाली हैं !
दक्षिका काली मन्त्र
माँ दक्षिका काली का एक 22 शव्द का मन्त्र है , जो माँ काली के उपशको को बहुत ही काम आता है ! वो इस प्रकार है –
- क्रीं,
- ॐ ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं !
- ह्रीं ह्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं स्वाहा !
- नमः ऐं क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा !
- नमः आं क्रां आं क्रों फट स्वाहा कालि कालिके हूं !
- क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रींह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा !
कालिका पुराण (Kalika Purana) कथा
महिषासुर नामक दानव भद्र कालि का अनन्या भक्तो में से एक था ! और जैसे की वेदों में लिखा गया है की असुर बहुत बड़ा मायावी होता था , वो अपनी माया से किसी भी रूप को धारण कर सकता है या कही आ -जा सकता है ! उसने माया से स्त्री रूप बदलकर कात्यन ऋषि के शिष्य को मोहित कर दिया ! और जैसा की आप जानते हैं की किसी भी ऋषि के लिए उसका सबसे बड़ा धर्म किसी भी स्त्री से दूर रहना होता है ! कात्यन ऋषि के शिष्य को उस लड़की के सम्पर्क में आने से उसका ऋषि धर्म नष्ट हो गया !
इससे गुस्सा होकर कात्यन ऋषि के शिष्य ने उसे श्राप दे दिया , की एक दिन उसका वद्ध नारी ही करेगी ! इससे महिषासुर को बहुत ही पछतावा होने लगा की उसने ये क्या कर दिया , एक ऋषि का धर्म नष्ट कर दिया ! लेकिन एक तरफ उसे ये ये भी चिंता होने लगी की उसे एक नारी के द्वारा बद्ध होगा !
वो अपने वो इस दर भयभीत था की नारी द्वारा बद्ध होने पर ये जमाना क्या कहेगा ? उसने इस दर भयभीत होकर माँ कलि का उपासना करने लगा ! माँ काली ने प्रकट होकर बोला मै तेरा उपासना से प्रशन्न हुई , बोलो क्या मागते हो !
महिषासुर बहुत प्रशन्न हुआ की मेरे सामने देवी माँ उपस्थित हैं ! उसने बोला हे माते मेरे पास सब कुछ ,बस मुझे देवताओ के जैसा इज्जत प्राप्त नहीं कर पता हूँ ! मुझे ऐसा वरदान दीजिये की हर यज्ञ या जहाँ देवताओ को पूजा जाता है वहां मेरा भी पूजा हो ! इस काली माँ बोले यज्ञ का सारा स्थान तो देवताओ के लिए पक्की है ! लेकिन मै तुम्हे इतना वरदान दे सकता हूँ ,की जहा पर मेरा पूजा होता हो वहां पर तेरा भी हो सके !
उसके लिए मै जब तेरा वध करूँगा तब ये सम्भव हो सकता है ! माते ने बोला की काली का रूप धारण करके तुझे और तेरे साथियों का वध करंगा ! और जैसा की कालिका पुराण में लिखा गया है , ठीक उसी प्रकार जहाँ काली का मूर्ति होता है वहां पर महिषासुर का भी शारीर होता है ! कालिका पुराण में देवी का सत्य और अंत्यंत सुन्दर चित्रण मिलता है !
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