Kanakadhara Stotram बहुत ही दुर्लभ स्तोत्र है और कनकधारा यंत्र भी बहुत दुर्लभ यंत्र है! हम सभी लोग जीवन में धन को लेकर बहुत चिंतित रहते है और उसे पाने के लिए हर संभव प्रयास करते है! कनकधारा स्तोत्रम् और यंत्र हमें धन प्राप्ति के चम्कारिक रूप से लाभ प्रदान करता है!
मैं आज आपको Kanakadhara Stotram के पढने के विधि तथा इससे होने वाले लाभ इत्यादि के बारे में पूर्ण जानकारी प्रदान करने वाला हूँ तथा साथ में आप सभी को मैं Kanakadhara Stotram Pdf भी देने वाला हूँ जिसे आप डाउनलोड करके पढ़ सकते है और उसका लाभ ले सकते है!
What is Kanakadhara Stotram

श्री कनकधारा स्तोत्रं का मतलब कुछ इस प्रकार है, श्री का मतलब लक्ष्मी, कनक का मलतब सोना और धारा का मतलब वर्षा या बहता प्रवाह होता है !
Kanakadhara Stotram और कनकधारा यंत्र बहुत ही अत्यंत दुर्लभ है, साथ में इसका यंत्र भी बहुत दुर्लभ है! कनकधारा मन्त्र एक ऐसी साधना है जो रंक से रंक, गरीब से गरीब व्यक्ति के धनोपार्जन में चमत्कारिक रूप से शीघ्रफलदायी है! यह आपके दरिद्रता का नाश करने वाली है!
Benefits of Kanakadhara Stotram
कनकधारा स्तोत्र को पढने वाले तथा इसके यंत्र को सिद्ध करने वाले व्यक्ति को बहुत सारे लाभ प्राप्त होते है! इसका पाठ हर व्यक्ति को करना चाहिए, तो आइये इससे होने वाले लाभ के बारे में जान लेते है!
- यह आपके दरिद्रता का नाश करती है!
- इसकी साधना से स्वयं सिद्ध ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है!
- अष्टसिद्धि की प्राप्ति होती है!
- धन के विषय में आपने जीवन में जितने भी समस्या है वो सभी एकमात्र इस साधना से आपको मिलता है!
Who created Kanakadhara stotram?
इस स्तोत्रम् की रचना कैसे और कब हुयी है, इसके पीछे एक लम्बी कहानी है, जिसे आपको पूरा पढना पड़ेगा लेकिन मैं आपको संक्षिप्त रूप से इसके बारे में आप सभी को बताने वाला हूँ की किस प्रकार से इसकी रचना हुयी
एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक पौराणिक ग्रन्थ है जिसका नाम शंकर दिग्विजय है , उसके चौथे सर्ग में इसका उल्लेख किया गया है! एक बार भगवान शंकर भिक्षु का रूप बनाकर भिक्षाटन हेतु घूमते घूमते एक गृहस्थ के घर गये और उसके द्वार के आगे खड़े हो गये और वहा पर उन्होंने भिक्षाम देहि तीन बार पुकार की भिक्षा माँगा !
भगवान् शंकर जिस गृहस्थ आदमी के घर गये थे वह एक विद्वान ब्राम्हण का घर था, किन्तु दुविधा यह थी की उसकी जो स्वामिनी थी उसके पास भिक्षा देने के लिए घर में अनाज का एक दाना भी न था !
गृहणी बहुत संकोच में पड़े हुए और सोचते हुए रोने लग गयी लेकिन घर में आवला का फल था और उस फल को लेकर भग के उस रूप को आवले दान में दिए ! यह देख भगवान् शंकर को उस पर दया आ गयी और अपने दिव्यदृष्टि से उसको देखा तो पता चला की यह बहुत ही दरिद्र है!
यह देख भगवान को उस पर दया आ गयी और उन्होंने तुरन्त माता लक्ष्मी की सम्पूर्ण स्तोत्र की तत्काल रचना की जिसे हम हम श्री कनकधारा स्तोत्रं (Kanakadhara Stotram) कहते है!
कनकधारा स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करे
इस स्तोत्र का शुरुआत करने के लिए सबसे पहले आपको माँ लक्ष्मी जी की मूर्ति है तो वह आप पाने आगे रखे या फिर आप अपने मदिर के सामने बैठ कर भी यह पाठ कर सकते है!
अगर आपके पास कनकधारा यंत्र प्राणप्रतिष्ठीत किया हुआ है तो आप उसके सामने भी बैठ कर पाठ कर सकते है! जब आप यह पाठ करना शुरू करे तो सबसे पहले आप माँ लक्ष्मी को सूखे आवले या हरे आवले फल का भोग लगाए!
उसके बाद गाय के घी का दिया प्र्जवाल्लित करना है उसके बाद आपको पाठ का आरम्भ करना है! जब तक आप पाठ करते है तब तक आपके सामने माँ लक्ष्मी की प्रतिमा, फोटो या कनकधारा यंत्र आपके सामने होना चाहिए !
Kanakadhara Stotram Lyrics in Hindi
श्रीकनकधारास्तोत्रम्
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।
।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
Kanakadhara Stotram PDF Download
आप हमारे नीचे दिए गये लिंक से Kanakadhara Stotram PDF को फ्री में डाउनलोड कर सकते है या फिर आप इसे ऑनलाइन खरीद भी सकते है,
General FAQ
1. कनकधारा स्तोत्र नवरात्रि में पढ सकते है
कनकधारा स्तोत्र का पाठ आप नवरात्री और विशेष पर्व पर कर सकते है!
2. कनकधारा स्तोत्र पाठ कितनी बार करना चाहिए?
कनकधारा के विधि विधान में यह कही पर भी नही लिखा गया है की इसका पाठ कितनी बार करना चाहिए, इस दिन में एक बार ही पाठ करना पर्याप्त है!
3. कनकधारा स्त्रोत का पाठ करने से क्या होता है?
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से आपको धन धान्य की प्राप्ति होती है, इसका पाठ करने से आपको चम्ताकारिक रूप से धनोपार्जन करने में लाभ होता है!
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