Karma Yoga Summary ! Karma Yoga Pdf Download

Karma Yoga” स्वामी विवेकानंद के द्वारा लिखा गया विश्व विख्यात पुस्तक है ! इस किताब का हर अध्याय स्वामी जी के व्याख्यानों का लिपिबद्ध रूप है ! “ Karma Yoga ” का हिन्दी अनुवाद इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं था ! स्वामी विवेकानंद जी की बातों को हिन्दी भाषा में अनुवाद करके लोगों तक पहुँचाते हुए हमें बहुत खुशी हो रहा है ! पढ़िए संपूर्ण कर्मयोग हिंदी में –

कर्म योग में स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं किसी काम को बिना स्वार्थ के 5 मिनट करके देखो , ये आपको बहुत मुश्किल लगेगा , किसी काम के बदले कुछ न मिलने की सोच भी हमें परेशान कर देता है , इसी लिए बिना किसी स्वार्थ के बदले काम करना आपके असली ताकत को दिखाता है ! आपने कभी सोचा है कि आप भी महान बन सकते हो स्वामी विवेकानंद के तरह कर्म को समझकर आप भी महान बन सकते हो !

Karma Yoga Summary

Karma Yoga

Each is great in his own place

हर एक इन्सान का खुद का जीवन में अपना एक अलग तरीका होता है , जो रोल आपको मिला है उसे अच्छी तरह से करे, आप अपना कर्म को ईमानदारी से निभाए ! एक बार एक राजा था जो अपने राज्य में आने वाले हर एक सन्यासी से पूछा करता था की दुनिया कौन सबसे ज्यादा महान है ,लेकिन कोई भी र्राजा को संतुस्ट नाही कर पता था !

Karma and Karma Yoga

एक दिन राजा के दरवार में एक नवयुवक और सुन्दर साधू आया जो बहुत ही कम उम्र में अपने घर बहार को छोड़कर संयासी जीवन धारण कर लिया था ! साधु ने कहा ये सबाल का जवाब पाने के लिए आपको मेरे साथ चलना होगा , राजा बोला ठीक है ! राजा और साधु दोनों चल पड़े ! जाते जाते उन दोनों को एक जंगल मिला , उसको वो सब पार किया तो आगे एक राज महल स्वंवर लगा हुआ था !

वहां के राजा के बेटी के एक राजकुमार का तलाश था, लेकिन वह राजकुमार राजा के बेटी को पसन्द होना चाहिए ! राजकुमारी को कोई भी लड़का पसन्द नहीं आता था , जो उसके मन लायक हो ! लेकिन जब राजा और साधु वहां पहुंचे तो , तो राजकुमारी ने साधु के गले में ही बरमाला डाल दिया ! अब साधु तो बहुत बड़ा दुबिधा में पड़ गया अब करे तो क्या करे , साधु वहां से भाग गया !

अब राजकुमारी को तो वह बहुत ज्यादा पसंद था , राजकुमारी भी साधु के पिछे पिछे भागा ! बीच में जंगल था , साधु को रास्ता पता था वो जल्दी से निकल गया लेकिन राजकुमारी को पता नहीं था वो जंगल में ही फंस गई ! अब रात होने बाला था लड़की जंगल में ही फंस गई थी ! किसी तरह से तीनो एक जगह पर मिला और रात होने के कारण एक पेड़ के नीचे बैठ गया ! उस पेड़ के ऊपर नीला पक्षी और उसका परिवार रहता था नीला पक्षी ने देखा हमारे पास मेहमान आए हैं और वो लोग ठंड से काप रहें हैं , नीला पक्षी ने किसी तरह से तिनका को प्रबन्ध किया और आग जला दिया ! फिर नीला पक्षी ने सोचा कि ये भूखे होंगे, कुछ खाने का प्रबन्ध किया जाय , कुछ नहीं मिलने पर उनलोग को भूख मिटाने के लिए खुद आग में छलांग लगा दिया और आग में जल गया !

जब इस चीज को नीला पक्षी के पत्नी ने देखी तो पत्नी धर्म समझ कर उसने भी अपना जान दे दी उसने भी आग में छलांग लगा दी ! इस चीज के बच्चे ने देखा तो उसने भी छलांग लगा दिया , लेकिन ये सब क्या हो रहा है राजा को बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था ! फिर साधु ने बोला कि अब सायाद आपको समझ में आ गया होगा ! महान कोई नहीं होता है सबसे महान उसका कर्म होता है !

first chapter of Karma Yoga

‘कर्म और चरित्र पर उसका प्रभाव’ शीर्षक वाला पहला अध्याय इस बारे में बात करता है कि हमारे कार्य हमारे स्वभाव को कैसे आकार देते हैं, प्रत्येक क्रिया के साथ जो हम करते हैं, हमारे चरित्र पर एक छाप छोड़ते हैं ! स्वामी विवेकानंद एक व्यक्ति को वह बनाने में चरित्र के महत्व पर जोर देते हैं जो वह है ! इस प्रकार, प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यों के माध्यम से स्वयं को आकार देता है कि वह क्या है और अपने भाग्य को भी आकार देता है ! वह यह भी बताते हैं कि अगर हम किसी व्यक्ति को आंकें, तो उसके महान प्रदर्शन को देखना उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि कभी-कभी मूर्ख भी महान उपलब्धि हासिल कर सकता है, बशर्ते कि परिस्थितियाँ उसके अनुकूल हों ! व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों को कैसे करता है ! यह बताता है कि एक आदमी वास्तव में क्या है !

Second chapter of Karma Yoga

दूसरे अध्याय में ‘प्रत्येक अपने स्थान पर महान है’ में उन्होंने एक राजा और एक संन्यासी की कहानी का उपयोग करते हुए इसे खूबसूरती से समझाया, जहां राजा पूछता है, “कौन बड़ा है? जो सब कुछ व्यक्तिगत छोड़कर उच्च लक्ष्य के लिए सन्यासी बन जाता है या वह जो समाज के भीतर रहता है और एक आदर्श गृहस्थ बन जाता है?”

Third chapter of Karma Yoga

अगले अध्याय में वे संस्कारों (या छापों) के बारे में बात करते हैं जहाँ वे कहते हैं कि मन में उठने वाला प्रत्येक विचार (अर्थात मन की प्रत्येक क्रिया) हम पर एक छाप छोड़ने के लिए बाध्य है, भविष्य में उस छाप के एक समान अवसर को जन्म देता है ! विचार की क्रिया ! एक व्यक्ति और कुछ नहीं बल्कि संस्कारों की कुल राशि है जो उसके दिमाग में जमा हो जाती है ! हालाँकि, ये छापें उनकी सामग्री के प्रति हमारे अंदर लगाव को जन्म देती हैं ! दूसरे शब्दों में, हम स्वयं को उस संस्कार के कार्यों से जोड़ लेते हैं ! उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति कई प्यार करने वाले लोगों से मिल सकता है जो उसकी प्रशंसा करेंगे लेकिन अगर वह किसी से नफरत करता है और उसे गाली देता है, तो उस व्यक्ति विशेष की स्मृति उसके दिमाग को परेशान करती रहेगी ! यह उस एक घटना द्वारा छोड़ी गई गहरी छाप के कारण है !

Four chapter of Karma Yoga

इसके बाद वे इस बारे में चर्चा करते हैं कि कोई व्यक्ति कैसे कार्य कर सकता है और फिर भी उस लगाव को कम कर सकता है जो इन कार्यों के संस्कारों को जन्म देता है ! उनका कहना है कि हमें संसार में अनासक्त होकर कर्म करना चाहिए और कर्मों की लहर को मन को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए ! दूसरे शब्दों में, हमें उस स्थिति तक पहुँचने का लक्ष्य रखना चाहिए जहाँ हमारे मन का स्वामी हो और मन हमारा गुलाम हो, न कि इसके विपरीत ! वे कहते हैं कि इसे प्राप्त करने का नुस्खा है, प्रतिफल की चिंता किए बिना निस्वार्थ कर्म करना !

Karma Yoga Pdf Download

डिस्क्लेमर :- Hindigyan किसी भी प्रकार के पायरेसी को बढ़ावा नही देता है, यह पीडीऍफ़ सिर्फ शिक्षा के उद्देश्य से दिया गया है! पायरेसी करना गैरकानूनी है! अत आप किसी भी किताब को खरीद कर ही पढ़े ! इस लेख को अपने दोस्तों के साथ भी जरुर शेयर करे 

कर्म योग का मुख्य विषय क्या है?

हिंदू धर्म में आध्यात्मिक मुक्ति के शास्त्रीय पथों में से कर्म योग निःस्वार्थ क्रिया का मार्ग है ! यह सिखाता है कि एक आध्यात्मिक साधक को फल या व्यक्तिगत परिणामों से जुड़े बिना धर्म के अनुसार कार्य करना चाहिए !

विवेकानंद के अनुसार कर्म योग क्या है?

विवेकानंद के अनुसार, कर्म योग निस्वार्थता और अच्छे कर्मों के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने का एक तरीका है ! कर्म-योग उस स्वतंत्रता के निःस्वार्थ कर्म से प्राप्त करना है जो समस्त मानव प्रकृति का लक्ष्य है !

क्या कर्म योग काम करता है?

बिना फल की आसक्ति के अपने कर्तव्यों का पालन करना कर्म योग है ! भगवद गीता में कर्म योग को मन को शुद्ध करने और अंततः आध्यात्मिक मुक्ति की ओर ले जाने वाले मार्गों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है ! कृष्ण सुझाव देते हैं कि कर्म योग पथ कर्तव्य और कार्य पर केंद्रित है !



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