(Maha Mrityunjaya Mantra) महा मृत्युंजय मन्त्र भगवान शिव को समर्पित है, यह मन्त्र ऋगवेद में है, इसे मृत्यु पर विजय पाने वाला महामृत्युंजय मन्त्र भी कहा जाता है! इस मन्त्र के कई नाम और कई रूप है, इसे हम भगवान् शिव के उग्र रूप के ओर संकेत करते हुए रूद्र मन्त्र भी कहा जाता है! इसे भगवान् शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए इसे हम त्रयंबकम मंत्र भी कहते है ! और साथ में इसे हम संजीवनी मन्त्र के रूप में भी इसे हम जानते है!
महा मृत्युंजय मन्त्र का उल्लेख हमें ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद और कई पुराणों में मिलता है! ऋषि-मुनियों ने महा मृत्युंजय मन्त्र को वेद का ह्रदय कहा है! ध्यान और चिंतन के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले अनेक मन्त्रो में गायत्री मन्त्र के साथ महा मृत्युंजय मन्त्र का सर्वोच्य स्थान है!
महा मृत्युंजय मन्त्र | Maha Mrityunjaya Mantra
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक- ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से
मुक्षिया- हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न अमृतात- अमरता, मोक्ष।
महा मृत्युंजय मन्त्र का जप कैसे करे
सभी लोगो के मन में एक सवाल जरुर होता है की हम महा मृत्युंजय मन्त्र का जप कैसे करे कब करे और कितनी बार करे, ये सवाल का उत्तर आपके के लिए जानना बहुत ही जरुरी होता है!
प्रत्येक मन्त्र का पुरस्चरण होता है, पुरस्चरण का मतलब है की उसके सिद्धि का प्रमाण ! कौन सा मन्त्र कितना किया जाए की वह स्वयंम सिद्ध हो जाए और कामना की पूर्ति हो!
शास्त्रों में बताया गया है की महा मृत्युंजय मन्त्र सवा लाख बार जप करने से सिद्ध होता है! एक मन्त्र साधारण होता है और दूसरा सम्पुट होता है! सम्पुट का मतलब होता है विशेष शक्तिशाली हो जाना! महा मृत्युंजय मन्त्रसामान्य रूप से
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे , सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
होता है, और यही महा मृत्युंजय मन्त्र है, लेकिन जब इसे हम संपुटित करते है, यानी की इसे विशेष प्रभावशाली बनाना हो तो यह मन्त्र कुछ अलग तरीके का हो जाता है!
ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!
सम्पुटित महा मृत्युंजय मन्त्र यह हो जाता है!
महा मृत्युंजय मन्त्र करने की विधि
- अगर आप किसी देवीय पूजा में है तो इसे 108 बार करना चाहिए ! और यह अपने स्थान पर प्रभावशाली है!
- अगर आप अनुष्ठान विधि से कोई पूजा करते है तो आपको चार चीजो पर ध्यान देना आवश्यक होता है! इसमे सबसे पहले शिववास, यानी की भगवान शिव किस अवस्था में है! सर्वदा भगवान् की स्थिति को सात जगहों पर पर बताई गयी है! अगर भगवान् शिव को स्थिति – प्रथम भाव , द्वितीय भाव और तृतीय भाव में हो तो यह स्थिति लाभदायक होती है! किन्तु चौथे, पांचवे, छठे और सातवे भाव में भगवान् शिव को स्थिति है तो वह फलदायक नही होता है!
- दूसरा चीज होता है प्रारंभ जो की सूर्य के नक्षत्र से गणना की जाती है! आप जो अनुष्ठान कर रहे है उसमे यह लाभदायक होगा की नुकसान दायक होगा!
- हवन नक्षत्र , जिसे हम अग्निवास के रूप में भी जानते है! जिस दिन आप हवन कर रहे है उस आप जाँच कर ले की वह दिन आपके लिए लाभदायक है या नही !
- चौथा चीज होता है, मुखावती- हम जो हवन करते हा वह पापग्रह के मुख में जाता है या शुभग्रह के मुख में जाता है! इसकी भी गणना सूर्य के नक्षत्र से की जाती है! अगर इन चारो में चारो मिल जाते है तो Maha Mrityunjaya Mantra महा मृत्युंजय मन्त्र सर्वोदय लाभदायक होता है!
महा मृत्युंजय मन्त्र जप करने से क्या लाभ होता है
- भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है।
- रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है।
- पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है।
- यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है।