Meghdoot महाकवि कालिदास द्वारा लिखा गया विश्व विख्यात काव्य है , महाकवि कि यह अप्रतिम रचना संस्कृत साहित्य का परम धवल रत्न है ! Meghdoot को एक खंडकाव्य कहा जा सकता है , विद्वानों का यह मानना है कि यह एक अत्यंत सुंदर दूत काव्य भी है ! यह दूत काव्य क्यों है ? क्योंकि इसमें मेघ को दूध बनाया गया है , यह गीतिकाव्य है इसमें जो मंदाक्रांता छंद है वह सहज हैं ! इसे अत्यंत सुंदर ढंग से गाया जा सकता है अतः यह गीत काव्य है! इस काव्य में रस की ऐसी वर्षा हुई है जिसमें सहृदय निरंतर भींगते हैं और आनंदित होते हैं !
इस काव्य के हर एक पद में उस वीरा तेरे के प्रेम की विकल का व्यवस्था आतुरता पुष्टिकरण बंदर और आशा की झलक अपने को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर रही है ! इसमें भावना अपने चरम पर है, पराकाष्ठा पर है ! इसलिए इसे पुर्मिकाव्य भी कहते हैं ! अपने प्रबल प्रभाव में प्रेम तो यहां बहुत हैं ! मेघदूत एकमात्र ऐसा खंडकाव्य है जो दूत काव्य है , गीत काव्य है , इतनी सारी विशेषताएं हैं ! तभी तो इस मेघदूत में अपनी पूरी जिंदगी रसास्वादन में लगा दी !
मेघदूत दो भागों बिभाजित है – 1 पूर्वमेघ , 2 उतरमेघ
पूर्वमेघ में 63 पद्य है और उतरमेघ में 52 पद्य है कुल मिलाकर 115 पद्य है , लेकिन कही कही 121 पद्य भी बताया जाता है !
Who is Kalidas ?
कालिदास का जन्म प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसवी के मध्य का माना जाता है ! महाकवि कालिदास भारत के ऐसे महान कवि और नाटककार थे जिनकी गिनती पूरी दुनिया के महानतम साहित्यकारों और लेखको में की जाती है ! संस्कृत भाषा के कवि कालिदास की बहुत सी रचनाएँ भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन पर आधारित किया जाता है ! ऐसा कहा जाता है कि कालिदास अपने शुरुआती जीवन में अनपढ़ और बहुत मूर्ख थे लेकिन उनके जीवन को दिशा तब मिली जब उनका विवाह शास्त्रार्थ में महारत रखने वाली राजकुमारी विद्योत्तमा से हुआ ! राजकुमारी ने कालिदास को ज्ञानी समझकर उनसे विवाह किया लेकिन जब उसे कालिदास की मूर्खता का आभाष हुआ तो उसने कालिदास को घर से बाहर निकाल दिया था और विद्वान बने बिना घर वापिस ना लौटने को वादा किया था ! कालिदास ने भी विद्वान बनने की ठानी और विद्वान बनने के बाद ही घर वापिस लौटे !
Meghdoot Katha in Hindi
अलका नगरी के अधिपति धनराज कुबेर अपने सेवक यक्ष अपने पत्नी से वेहद प्रेम करते है , और उसी प्रेम के वजह से यक्ष को कर्तव्य-प्रमाद के कारण एक वर्ष के लिए नगर – निष्काशीत कर देते है ! ऐसा बोला जाता है की जिसकी वजह से तुम अपने कर्तव्य से पीछे हो रहे हो तुम्हे उसी से एक साल के लिए दूर किया जाता है ! वह यक्ष अलका नगरी से सुदूर दक्षिण दिशा में रामगिरि के पहाड़ी पर आश्रम बनाकर उसमे में निवास करने लगा !
सद्यविवाहित यक्ष जैसे – तैसे आठ माह व्यतीत कर लिया , लेकिन जब आषाढ़ के महिना आया तो वारिश होने लगा ! और उस वारिश के मौसम में यक्ष को पत्नी को याद सताने लगा लेकिन वह कर भी क्या सकता था ! उसे एक पत्नी से दूर रहने का साप मिला हुआ था ! फिर उसने अपने पत्नी को पात्र लिखने को सोचा , लेकिन इसके लिए भी उसके मन में चिंता थी की पात्र को कौन पहुंचाएगा ! यक्ष ने मेघ को ही सर्वोत्तम पात्र के रूप में मानकर यथोचित सत्कार के अनंतर उससे दूतकार्य के लिए निवेदन करता है !
रामगिरि से विदा लेने का अनुरोध करने के पश्चात् यक्ष मेघ को रामगिरि से अलका तक का मार्ग सविस्तार बताता है ! मार्ग में कौन-कौन से पर्वत पड़ेंगे जिन पर कुछ क्षण के लिए मेघ को विश्राम करना है, कौन-कौन सी नदियाँ जिनमें मेघ को थोड़ा जल ग्रहण करना है और कौन-कौन से ग्राम अथवा नगर पड़ेंगे, जहाँ बरसा कर उसे शीतलता प्रदान करना है या नगरों का अवलोकन करना है, इन सबका उल्लेख करता है !
उज्जयिनी, विदिशा, दशपुर आदि नगरों, ब्रह्मावर्त, कनखल आदि तीर्थों तथा वेत्रवती, गम्भीरा आदि नदियों को पार कर मेघ हिमालय और उस पर बसी अलका नगरी तक पहुँचने की कल्पना यक्ष करता है ! उत्तरमेघ में अलकानगरी, यक्ष का घर, उसकी प्रिया और प्रिया के लिए उसका सन्देश पहुच गया !
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