
आज हम आप सभी को Panchmukhi Hanuman Kavach Pdf को उपलब्ध कराने वाला हूँ, जिसे आप हमारे इस वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है! आज हम इसके बारे में सब कुछ बात करने वाले है!
हनुमान जी के बारे में तो सभी लोग जानते है लेकिन क्या किसी ने कभी ये जानने की कोशिस की की हनुमान जी पंचमुखी क्यों हुए, इसके पीछे क्या रहस्य है या फिर इसके पीछे क्या कहानी है! तो आज हम इसके उपर से सभी पर्दे उठाने वाले है! और साथ में इसे पढने से आपको क्या क्या लाभ होने वाले है उसके बारे में भी आप सभी को बताने वाले है !
Panchmukhi Hanuman Story
लंका में महाबली मेघनाथ के साथ बहुत ही भीषण युद्ध चला और अंतिम में मेघनाथ मारा भी जाता है, रावण अब तक अपने मद में चूर था! राम सेना लक्षमण का पराक्रम देखकर थोडा विचलित जरुर हुयी थी!
रावण को दुखी देखकर रावण की माता कैकसी ने पातलोक में रावण के दो भाई अहिरावन और महिरावण की याद दिलाई ! रावण को याद आया की वो दोनों उसके बचपन के मित्र रहे है!
लंका का राजा बनाने के बाद उनकी सुधि ही नही रही, रावण यह भलीभाँती जानता था की अहिरावन और महिरावण दोनों तन्त्र और मन्त्र विद्या में काफी माहिर थे और माँ कामाक्षी के परम भक्त है!
रावण ने उन दोनों को बुला भेजा और उसमे तन्त्र मन्त्र से राम और लक्षमण को खत्म कर देने की बात कही! ये बात दूतो और गुप्तचर के जरिये विभीषण को पता चला! ये बाद सुनकर विभीषण को चिंता होने लगी! उसे लगा की भगवान् राम और लक्ष्मण को सुरक्षा को और बढ़ाना पड़ेगा !
ये बात जब हनुमान को को पता चला तो हनुमान जी ने राम और लक्ष्मण के कुटिया के बार एक सुरक्षा घेरा खीच दिया गया ! इस घेरे के अंदर कोई भी तन्त्र – मन्त्र के जरिये या कोई भी इस घेरे के भीतर बिना अनुमति के नही घुस सकता था !
ऐसे में अहिरावण और महिरावण दोनों राम और लक्षमण को मारने गये लेकिन उस सुरक्षा घेरे के चलते उनकी एक ना चली! उसके बाद उन्होंने एक चल चली उन्होंने विभीषण का रूप धारण करके उनके कुटियाँ में घुसे और राम और लक्ष्मण को गहरी नींद में ही उठा ले गये !
विभीषण को कुछ शक हुआ है और उसमे छानबीन कराई और इसमें उसे महिरावण के ऊपर शक हुआ ! विभीषण में हनुमान को को महिरावण के बारे में बताते हुए उसका पीछा करने के लिए कहा!
हनुमान जी ने तुरंत पक्षी का रूप धारण किया और वे निकुम्भ्ला नगर पहुचे, वहा पर पक्षी का रूप धर के उन्होंने कबूतर और कबूतरी को बात करते हुए सूना की अब रावण की जीत पक्की है! उन्होंने सूना की अहिरावण और महिरावण राम लक्ष्मण की बलि चढ़ा देंगे और सारा युद्ध समाप्त हो जायेगा !
इतना सुनते ही हनुमान जी को यह समझ में आ गया की उसने भगवान् राम और लक्ष्मण को सोते हुए ही उठाकर पाताललोक ले गया है ! हनुमान जो वायु वेग से रसातल के तरफ पहुचे !
हनुमान को रसातल पर द्वार पर एक पहरेदार मिला जिसका आधा शरीर वानर का और आधा शरिर मछली का था ! उसने हनुमान जी द्वार पर ही प्रवेश करने से रोक दिया, और उसने बोला की मुझे बिना परास्त किये भीतर जाना असम्भव है!
दोनों में ही लड़ाई छिड़ गयी, हनुमान जी के विपरीत यह बहुत ही बलसाली और कुशल योद्धा निकला, लेकिन हनुमान जो तो हनुमान जी थे, उन्होंने उसे परास्त किया और उसकी प्रशंसा किये बिना ना रह सके !
उन्होंने उससे उसका परिचय पूछा, तो उसने बताया की वह हनुमान जी का पुत्र है और मैं मचली के गर्भ से पैदा हुआ हूँ, मेरा नाम मकरध्वज है! और फिर अपने वारे में सारी कहानी बतायी !
सारी बाते सुनने के बाद हनुमान जी में अपने बेटे से अपने पिता के स्वामी के रक्षा के लिए उसकी सहायता करने के लिए बोले, इस पर मकरध्वज ने उन्हें बताया की उनकी थोड़ी ही देर में बलि चढ़ाई जाएगी !
आपके लिए यह अच्छा होगा की आप कामाक्षी देवी के मंदिर में जाकर बैठ जाए और सारी पूजा झरोखे से करने के लिए कहे! उन्होंने पहले मधुमक्षी का रूप धरा और मदिर में घुस गये, और माँ को प्रमाण करके अपने सफलता की कामना की!
माँ कामाक्षी देवी में हनुमान जी से कहा ये मंदिर में जो पांच दीप जल रहे है अगर कोई इसे एक बार में ही बुझा देगा तो उन दोनों का समाप्त हो जाना तय है! उन्होंने माँ कामाक्षी का रूप धरा और उन्होंने महिला के स्वर में उन्होंने कहा की वो उनकी पूजा झरोखे से करे !
वहा पर पूजा हुआ और बहुत सारा चढ़ावा चढ़ा, इसी बीच में उन्होंने राम और लक्ष्मण को छुडा कर बाहर ले आये और उन्होंने मकरधवज को कहा की वो उनका ख़याल रखे और कहा की वो उन दोनों की बलि चढ़ाकर आते है!
उसके बाद हनुमान और उन दोनों के बीच में युध्द छिड़ गया, वो जितनी बार उसे मारते वो उतनी ही बार जिन्दा हो जाते है, इस पर हनुमान जी को माँ कामाक्षी देवी की बात याद आई, उन्होंने कहा था की जब वो पांचो दीपक को एक साथ बुझाया जाए तो वो नये रूप का धारण करके उसका वध कर सकते है !

इसी समय में हनुमान जी ने अपना पंचमुखी रूप का धारण किया, हनुमान जी का पांच मुख वाला विराट रूप यानी पंचमुखी अवतार पांच दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक स्वरूप में एक मुख, त्रिनेत्र और दो भुजाएं हैं। इन पांच मुखों में नरसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप हैं। इनके पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रधान माने जाते हैं।
इस तरह से हनुमान जी में अपना पंचमुखी रूप धारण किया, इस कहानी से आपको यह पता चल गया होगा कोई हनुमान जी का नाम पंचमुखी क्यों पड़ा! Shiv Puran Pdf Download in Hindi
Panchmukhi Hanuman Kavach benefits
जो भी मनुष्य इस पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ करता है, उसे अद्भुत लाभी प्राप्त होते है! जो भी व्यक्ति इस कवच का रोजाना पाठ करता है उसके सभी शत्रु नष्ट हो जाते है!
जो मनुष्य इसका दिन में तीन बार पाठ करता है उसे सम्पति प्राप्त होती है! और जो मनुष्य इसे दिन में चार बार पाठ करता है वो समस्त लोगो को अपने वश में कर लेता है! तथा जो मनुष्य इसका दिन में पांच बार पाठ करता है उसके समस्त रोगों का निवारण हो जाता है!
इसका पाठ करने से मनुष्य के अंदर से सारे भय और पीड़ा दूर हो जाता है! इस पंचमुखी हनुमान कवच (Panchmukhi Hanuman Kavach) में स्वयं भगवान् हनुमान ही का वास होता है! इससे भुत, प्रेत, चांडाल, अन्य बुरी आत्माओं से बचाव होता है !
Panchmukhi Hanuman Kavach Lyrics
श्रीगणेशाय नमः । ॐ श्री पञ्चवदनायाञ्जनेयाय नमः । ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः । गायत्रीछन्दः । पञ्चमुखविराट् हनुमान्देवता । ह्रीं बीजं । श्रीं शक्तिः । क्रौं कीलकं । क्रूं कवचं । क्रैं अस्त्राय फट् । इति दिग्बन्धः । श्री गरुड उवाच । अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणुसर्वाङ्गसुन्दरि । यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ १॥ पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् । बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥ २॥ पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् । दन्ष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम् ॥ ३॥ अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् । अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ ४॥ पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ॥ सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् ॥ ५॥ उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् । पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥ ६॥ ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् । येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ ७॥ जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् । ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥ ८॥ खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् । मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥ ९॥ भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् । एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ १०॥ प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् । दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ॥ ११॥ सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् । पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम । पीताम्बरादिमुकुटैरूपशोभिताङ्गं पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥ १२॥ मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् । शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ १३॥ ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले । यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता ॥ १४॥ ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोत्तरमुखायादिवराहाय सकलसम्पत्कराय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशङ्कराय स्वाहा । ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । पञ्चमुखवीरहनुमान् देवता । हनुमानिति बीजम् । वायुपुत्र इति शक्तिः । अञ्जनीसुत इति कीलकम् । श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् । ॐ अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः । ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः । ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः । ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ पञ्चमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । इति करन्यासः । ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः । ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा । ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् । ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् । ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् । पञ्चमुखहनुमते स्वाहा । इति दिग्बन्धः । अथ ध्यानम् । वन्दे वानरनारसिंहखगराट्क्रोडाश्ववक्त्रान्वितं दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा । हस्ताब्जैरसिखेटपुस्तकसुधाकुम्भाङ्कुशाद्रिं हलं खट्वाङ्गं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् । अथ मन्त्रः । ॐ श्रीरामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहनकारणाय महाबलप्रचण्डाय फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविश्वरूपाय सप्तसमुद्रनिर्लङ्घनाय पिङ्गलनयनायामितविक्रमाय सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टिनिरालङ्कृताय सञ्जीविनीसञ्जीविताङ्गदलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदाय दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहित- रामवरप्रदाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखवीरहनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसम्पत्कराय स्वाहा । ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा । ॐ टंटंटंटंटं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखवीरहनुमते परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा । ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं ळंक्षं स्वाहा । इति दिग्बन्धः । ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते टंटंटंटंटं सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा । ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा । ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुखहनुमते मंमंमंमंमं सकलविषहराय स्वाहा । ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लंलंलंलंलं नृसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये पञ्चमुखहनुमते स्वाहा । ॐ उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा । ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय श्रीरामचन्द्रकृपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय ब्रह्माण्डनाथाय कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा । भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिन्यन्तरिक्षग्रह- परयन्त्रपरतन्त्रोच्चटनाय स्वाहा । सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते श्रीरामचन्द्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा । इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः । एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥ द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् । त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥ १६॥ चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् । पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥ षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् । सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥ अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् । नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥ दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् । रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥ निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः । कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ २१॥ ॥ इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥
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