Vastu Shastra के अनुसार कोई भी काम करने के बाद हमेशा सफलता होती है लेकिन कोई भी काम Vastu Shastra के अनुसार नहीं करेगा तो घर में आपको अच्छी सुकून की नींद, अच्छा सेहतमंद भोजन और भरपूर प्यार नहीं मिल सकता है ! आज के इस आर्टिकल वास्तुशास्त्र के ऐसे ही कुछ टिप्स बताने बाले हैं ! जिसे पालन करके आप सुख स्म्रिधि प्राप्त कर सकते हैं !
वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं
उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार महत्त्वपूर्ण दिशाएं हैं ! इस वास्तु विज्ञान में चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं भी होती हैं ! आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा के रूप में शामिल किया गया है ! इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस वास्तु विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना जाता है ! मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा जाता है !
वास्तुशास्त्र के पूर्व दिशा
वास्तु विज्ञान में यह दिशा को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, क्योंकि यह सूर्यउदय होता है ! इस दिशा के स्वामी इन्द्र देवता को कहा जाता हैं ! किसी भी भवन या इमारत बनाते समय इस दिशा को सबसे अधिक खुला छोड़ना चाहिए ! इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर या भवन में रहने वाले लोग ज्यादातर बीमार होते रहते हैं ! परेशानी और चिन्ता बनी रहती हैं ! उन्नति के मार्ग में भी बाधा बनी रहती है ! यह सुख और समृद्धि कारक होता है !
वास्तुशास्त्र के आग्नेय दिशा
पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा को आग्नेय दिशा कहा जाता है ! अग्निदेव को इस दिशा के स्वामी कहा जाता है ! इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर में वातावरण अशांत और लोग तनावपूर्ण जीवनयापन करते है ! धन की हानि होती रहती है ! इनकम कम और खर्च ज्यादा होता है ! मानसिक परेशानी और चिन्ता होती रहती है ! यह दिशा शुभ होने पर भवन में रहने वाले घर के लोग उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं ! इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तुशास्त्र की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होता है !
वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा
दक्षिण दिशा के स्वामी यम देव को कहा जाता है ! यह दिशा वास्तु विज्ञान में सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है ! इस दिशा को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए ! दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजी रोजगार में परेशानी का सामना करना पड़ता है ! गृहस्वामी के निवास के लिए यह दिशा सर्वाधिक महत्व पूर्ण होता है !
वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा
दक्षिण और पश्चिम के मध्य की दिशा को नैऋत्य दिशा कहा जाता है ! इस दिशा का वास्तुदोष से दुर्घटना, रोग एवं मानसिक अशांति होता है ! अगर इस पर ध्यान दिया जाए तो यह आचरण एवं व्यवहार को भी दूषित होने से बचा जा सकता है ! भवन निर्माण करते समय इस दिशा में थोड़ा वजन रखना चाहिए ! इस दिशा का स्वामी राक्षस को माना जाता है ! यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर भवन में रहने वाला व्यक्ति सेहतमंद रहता है एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि हो जाता है !
वास्तुशास्त्र में ईशान दिशा
ईशान दिशा के स्वामी शिव को कहा जाता है, इस दिशा में कभी भी शोचालय का निर्माण कभी नहीं होना चाहिये ! नलकुप, कुंआ आदि इस दिशा में बनाने से प्रचुर मात्रा जल की प्राप्त हो सकता है !
Vastu Shastra Tips
- घर में सरसों के तेल के दीये में लौंग डालकर लगाना शुभ है !
- घर में सप्ताह में एक बार गूगल का धुआं करना शुभ होता है !
- गेहूं में नागकेशर के 2 दाने तथा तुलसी की 11 पत्तियां डालकर पिसाया जाना शुभ माना जाता है !
- हर गुरुवार को तुलसी के पौधे को दूध चढ़ाना चाहिए !
- तवे पर रोटी सेंकने के पूर्व दूध के छींटें मारना शुभ है !
- पहली रोटी गौ माता के लिए निकालें !
- मकान में 3 दरवाजे एक ही रेखा में नही होना चाहिए !
- सूखे फूल घर में नहीं रखना चाहिए !
- संत-महात्माओं के चित्र आशीर्वाद देते हुए बैठक में ही लगाना चाहिए !
- घर में टूटी-फूटी, कबाड़, अनावश्यक वस्तुओं को नहीं रखना चाहिए !
- दक्षिण-पूर्व दिशा के कोने में हरियाली से परिपूर्ण चित्र लगाएं !
- घर में टपकने वाले नल नहीं रखना चाहिए !
- घर में गोल किनारों के फर्नीचर ही शुभ होता है !
- घर में तुलसी का पौधा पूर्व दिशा की गैलरी में या पूजा स्थान के पास रखें !
- वास्तु की मानें तो उत्तर या पूर्व दिशा में की गई जल की निकासी आर्थिक दृष्टि से शुभ होती है। इसलिए घर बनाते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए !
- स्टडी रूम के दक्षिण-पूर्व में मनीप्लांट लगाएं !
- आप स्टडी रूम में हरे पर्दों का प्रयोग करें !
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