हिन्दू धर्म में 18 पुराण होते हैं ,उसमे से सर्व प्रथम Vishnu Purana को माना जाता है ! Vishnu Purana की रचना महर्षि प्रसर्व जी ने किये हैं ! हमारे हिन्दू धर्म में एक से एक महत्वपूर्ण पुराण हैं , लेकिन विष्णु पुराण का गाथा सर्वो पारी है , इसीलिए 18 पुराणों में सबसे पहला स्थान विष्णु पुराण को दिया जाता है !
विष्णु पूराण क्या है ?
पुराण का अर्थ होता है सबसे पुरातन यानि सबसे प्राचीन ! विष्णु पुराण में हमें विभिन्न प्रकार की जानकारिय मिलती है जैसे की पृथ्वी का विकास , की पृथ्वी का विकास कैसे हुआ ,कैसे इसमें जिव जन्तु जन्म लिए ! सूर्य ,चन्द्रमा ,हवा ,पहाड़ ,समय की गणना ,मन्वंतर इत्यादि की वर्णन इस Vishnu Purana में किया गया है !
विष्णु और शिव अलग – अलग होते हुए भी दोनों एक हैं ऐसा समझाने का प्रयास इस ग्रन्थ में किया गया है !
महर्षि प्रशव ने इस ग्रन्थ में विष्णु सारे अवतार के वारे में बताये है जैसे की मत्स्य अवतार , लीला अवतार ,नारद अवतार ,बाल ऋषियों का अवतार हो , वामन अवतार , कृष्ण अवतार , राम अवतार वर्णन किये हैं !
कर्तव्य का पालन
इस पुराण में स्त्रियों, साधुओं और शूद्रों को सर्व श्रेष्ठ कहा गया है ! जो स्त्री अपने तन-मन और कर्म से धर्म पति की सेवा करती है, उसे विष्णु पुराण के अनुसार कोई अन्य कर्मकाण्ड किए बिना ही शिद्धि प्राप्त हो जाती है !
- शूद्रोश्च द्विजशुश्रुषातत्परैद्विजसत्तमा: !
- तथा द्भिस्त्रीभिरनायासात्पतिशुश्रुयैव हि !!
राजाओं का सोच
विष्णु पुराण में प्राचीन काल के राजायो के अनुशार , कलियुगी राजाओं को चेतावनी दीया गई गया है कि वो हमेशा सत्य के मार्ग पर चले और हमेशा अपने प्रजा के हित के बारे में सोचे ! सदाचार से ही अपने प्रजा को जीता जा सकता है, अगर आपका मन में पाप है तो आप प्रजा को कभी भी खुश नहीं कर पाओगे ! क्योकि हमेश सत्य का मार्ग पर चलने वाला ही ही सही रजा होता है !
जो सदा सत्य का पालन करता है, सबके प्रति एक जैसा भाव रखता है और दुख-सुख में सहायक होता है ! वही राजा श्रेष्ठ होता है ,और प्रजा भी यही चाहता है ! राजा का धर्म प्रजा का हित और रक्षा करना होता है ! जो राजा अपने स्वार्थ में डूबकर प्रजा की उपेक्षा करता है जो हर चीज में खुद का स्वार्थ देखता हो ! और सदा भोग-विलास में डूबा रहता है, उसका विनाश समय से पूर्व अवश्य जाता है !
आध्यात्मिक चर्चा
‘विष्णु पुराण’ के अन्तिम चार अध्यायों में आध्यात्मिक चर्चा करते हुए त्रिविध ताप, परमार्थ और ब्रह्मयोग का ज्ञान कराया गया है ! ‘विष्णु पुराण’ में मानव-जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है ! क्योकि इस पुराण के अनुसार सबसे बुद्धिमान मानव हो मन जाता है ! मानव तन पाने लिए देवता भी लालायित रहते हैं ! जो मनुष्य माया-मोह के जाल से मुक्त होकर कर्त्तव्य पालन करता है, उसे ही इस जीवन का लाभ प्राप्त होता है !
‘निष्काम कर्म’ और ‘ज्ञान मार्ग’ का उपदेश भी इस पुराण में दिया गया है ! लौकिक कर्म करते हुए भी धर्म पालन किया जा सकता है। इस पुराण के अनुसार ‘कर्म मार्ग’ और ‘धर्म मार्ग’- दोनों का ही श्रेष्ठ माना गया है ! कर्त्तव्य करते हुए व्यक्ति चाहे घर में रहे या वन में, वह ईश्वर को अवश्य प्राप्त कर लेता है !
भारत का मानचित्र
भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-
- इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते !
- न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते !!
अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है। इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।
- इस कर्मभूमि की भौगोलिक रचना के विषय में कहा गया है-
- उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ! वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र संतति !!
अर्थात समुद्र तल कें उत्तर भाग में और हिमालय के दक्षिण भाग में जो पवित्र भूमि स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है ! और पर निवास करने वाले लोग ‘भारतीय’ कहलाती है !
इस भारत भूमि की वन्दना के लिए विष्णु पुराण का यह पद विख्यात है-
- गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे !
- स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात् !
- कर्माण्ड संकल्पित तवत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते !
- अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिंल्लयं ये त्वमला: प्रयान्ति !!
अर्थात देवगण हमेशा यही चाहते हैं कि जिन्होंने सत्य ,स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग् पर चलने के लिए भारतभूमि में जन्म लिया करते है, वे मनुष्य हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य तथा भाग्यशाली हुआ करते हैं ! जो लोग भगवान के दिए गए मार्ग पर चलते हैं ! ऐसे लोग धन्य होते हैं !
‘विष्णु पुराण’ में कलि युग में भी सदाचरण और सत्य मार्ग पर चलने के लिए बल दिया गया है ! इसका आकार छोटा अवश्य है, परंतु मानव जाती के लिए यह पुराण अत्यन्त लोकप्रिय , महत्त्वपूर्ण एवं कल्याण कारी है !
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