दुनिया में ग्रन्थ में सर्व प्राथम स्थान वेद को दिया गया है , वेद की संख्या चार है – rigveda,Yajurveda , सामवेद , अथर्वदेव ! आज के इस लेख में मै आपको Yajurveda के बारे में पूरी जानकारी देने वाला हूँ ! Yajurveda में ही यज्ञ की सफल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र दिया गया हैं ! ऋग्वेद के बाद यजुर्वेद को दूसरा वेद माना जाता है !
Yajurveda हिन्दू धर्म के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थों में से एक है , यजुर्वेद में ऋग्वेद का लगभग 664 श्लोक पाए जाते हैं ! यजुर्वेद को गद्यात्मक ग्रन्थ होने के कारण इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है , गद्यात्मक मन्त्रों को यज्ञ में ‘’यजुस’’ कहा जाता है !
Yajurveda period in Hindi
यजुर्वेद स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं ,यजु का अर्थ ‘यज्ञ’ होता है , इस वेद में यज्ञों के नियम व विधि वर्णन मिलता है ! यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान ग्रंथ है , यजुर्वेद का पाठ करने वाले ब्राह्मणों को ‘अध्वर्यु‘ का उपाधि दिया जाता है ! जिस तरह से ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में किया गया था ठीक उसी प्रकार यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी लेकिन ज्ञानी के मतानुसार इसका रचनाकाल 1400 से 1000 ई.पू. का माना गया है ! यजुर्वेद की संहिताएं लगभग अंतिम रची गई थीं , जो ईसा पूर्व द्वितीय सहस्राब्दि से प्रथम सहस्राब्दी के आरंभिक के दिनों में लिखी गईं थी !
यजुर्वेद नामकरण
यजुस के नाम पर वेद का नाम यजुस+वेद यानि यजुर्वेद बना है , यजुर्वेद शब्दों की संधि से बना है ! यज् का अर्थ समर्पण होता है , पदार्थ (जैसे ईंधन, घी, आदि), कर्म (सेवा, तर्पण ), श्राद्ध, योग, इंद्रिय निग्रह इत्यादि के हवन को यजन यानि समर्पण की क्रिया कहा जाता है !
यजुर्वेद में ज्यादातर यज्ञों और हवनों के नियम और विधान दिया गया हैं, अतः इस ग्रन्थ को कर्मकाण्ड का प्रधान कहा जाता है ! इस ग्रन्थ से आर्यों के सामाजिक , शैक्षणिक और धार्मिक जीवन के बारे में पता चलता है ! यजुर्वेद संहिता में वैदिक काल के धर्म के कर्मकाण्ड आयोजन हेतु यज्ञ करने के लिये मंत्रों का संग्रह दिया गया है ! यजुर्वेद वेद का एक ऐसा धार्मिक किताब है, जो आज भी जन-जीवन में अपना स्थान किसी न किसी रूप में बनाये हुऐ रखता है ! संस्कारों एवं यज्ञीय कर्मकाण्डों के ज्यादा से ज्यादा मन्त्र यजुर्वेद में ही समाहित है ! इनमे कर्मकाण्ड के यज्ञों का विवरण इस प्रकार हैः
- अग्निहोत्र
- अश्वमेध
- वाजपेय
- सोमयज्ञ
- राजसूय
- अग्निचयन !
राष्ट्रोत्थान प्रार्थना
ओ3म् आ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूरऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढ़ाऽनड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे-निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ — यजुर्वेद 22, मन्त्र 22
अर्थ-
ब्रह्मन् ! स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी !
क्षत्रिय महारथी हों, अरिदल विनाशकारी !!
होवें दुधारू गौएँ, पशु अश्व आशुवाही !
आधार राष्ट्र की हों, नारी सुभग सदा ही !!
बलवान सभ्य योद्धा, यजमान पुत्र होवें !
इच्छानुसार वर्षें, पर्जन्य ताप धोवें !!
फल-फूल से लदी हों, औषध अमोघ सारी !
हों योग-क्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी !!
यजुर्वेद की शाखाएं
यजुर्वेद ज्यादातर कर्मकाण्ड से ही जुडा हुआ है ,तथा इसमें तारह तरह के यज्ञों (जैसे अश्वमेध) का वर्णन किया गया है ! यजुर्वेद का पाठ अध्वुर्य द्वारा किया प्रस्तुत किया जाता है ! यजुर्वेद को 5 शाखाओ मे भागो में बाटा है-
- काठक,
- कपिष्ठल,
- मैत्रियाणी,
- तैतीरीय,
- वाजसनेयी
वेद व्यास के शिष्य वैशंपायन के 27 शिष्य थे ऐसा ग्रंथो में दर्शाया गया है , इनमें सबसे महत्व पूर्ण और प्रतिभाशाली याज्ञवल्क्य थे ! एक बार की बात है इन्होने यज्ञ में अपने साथियो की अज्ञानता से क्षुब्ध हो गए थे , इस विवाद के देखकर वैशंपायन ने याज्ञवल्क्य से अपनी सिखाई हुई विद्या और आश्वर्य वापस मांगी लिया ! इस पर क्रोध होकर याज्ञवल्क्य ने यजुर्वेद का वमन कर दिया – ज्ञान के कण कृष्ण वर्ण के रक्त से सने हुए थे और इससे कृष्ण यजुर्वेद का जन्म हुआ ! यह देखकर दूसरे शिष्यों ने तीतर बनकर उन दानों को चुग लिया और इससे तैत्तरीय संहिता का जन्म हुआ !
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